________________
॥ श्री गणशाय नमः ॥
अथ वूदीरी वारता वदी राव सुरजन राज करै* । राव सुरजनरै दोय वेटा। एकैरो नाव दूदो, जैसे भैरवदासोत चांपावतरो दोहीतरो।
दूसरो भोज, तिको रावळ सहसमलरो दोहीतरो डूगरपुररै धणोरो।
यु करता, दोन भायां आपसमे दूदै अर भोज वडो वेध पड़ियो ।। ताहरा राव सुरजन वेटा बेऊ तेडिनै कह्यो-'थे मो ऊपर फिरिया। थे म्हारो कह्यो न मानो। म्हैं राजसू कोई काम नही । थे धरती वैहच ल्यो ।' ताहरां बूदी तो ३६० गांमांसू दूदैनूं दीनी । अर खडखटरो परगनो गाम ३६०सूं भोजनू दीधो' । __ *राव सुर्जन हाजा वि स १६११मे वृदीकी गद्दी पर बैठा था। यह राजनीति-चतुर होते हुए भी उदार और धार्मिक-प्रकृतिका शासक था। इनके समयसे वूदीका सवध मेवाटसे छूट कर मुगलोसे हो गया था। पर मुगलोकी अधीनता स्वीकार करते समयकी सधिमे बादगाह अकवरमे गवने यह गर्त ते करवा ली थी कि मेवाडके ऊपर शाही आक्रमणके समय
दीकी सेना कोई माथ नही देगी। राव सुर्जनने द्वारकामे श्रीरणछोडरायका मदिर नया वनवाया था जो अभी तक स्थित है। काशीमे भी इन्होने कई घाट और महल बनवाये थे। काशीमे इनके निवासके समय गौड (वगाल) देशके एक कवि चन्द्रशेखरने चौहान वश और राव सुर्जनकी प्रशमामे 'सुजंन चरित' नामक एक सस्कृत काव्यकी रचना की थी। इनकी मृत्यु वि स १६४२मे काशीमे ही हुई थी जहा इनका और इनके साथ सती होने वाली गनियोके स्मारक बने हुए है।
स्व श्रीजगदीगसिंह गहलोतने अपने 'राजपूतानेका इतिहास' द्वितीय भागमे वूदी राज्यके राव भोजके वर्णनमे 'वाकीदासको वात ११२६ के आधार पर (टिप्पणीमे उसका नरेत करते हुए) भोजको वासवाडाके रावल जगमाल उदयसिंहोतका दोहिता लिखा है।
1 एफका नाम दूदा जो चापावत जैसे भैरवदामोतका दोहिता और दूसरा भोज जो डूंगरपुरके स्वामी रावल नहनमलका दोहिता। 2 इस प्रकार चलते दूदा और भोज दोनो भावों में परम्पर वटी अनबन हो गई (परस्पर वडा विरोध हुआ)। 3 तब राव सुरजनने दोनों बेटोको बुला कर कहा कि तुम मेरे ऊपर फिर गये, मेरी प्राजाका पालन नहीं करते। मेरेसो उन राज्यसे अब कोई वास्ता नहीं। तुम धरतीका वट कर लो। 4 दूदेको दी। 5 भोजनो दिया।