Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 03
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 278
________________ २७० ] मुहता नणसीरी ख्यात ताहरां वनो गौड और धनो गौड दूदैरे प्रधान छे, तिके ग्राया छै । घोडा हाथियारी कीमत मडै छै ।' कागळ' हाथ मांहै छे । घोडो जिको ४०० सौरो छै, तिकैरा ४० मांडै छै । हजाररो है तेरो सवहेक माडै छै । 4 7 8 19 .3 14 ताहरां हमीररी वेटी सदाकुवर, तिकै वात जांणी । तिका बोली- म्हारो देवर छै सु उबारो ।' कह्यो - 'हिवै क्युकर ऊवरे ?" ताहरा वा बोली- 'न उबारो तो हू कूकू छू - 'चूक छ', का उबारो ।" ताहरा दोल जायन उवैनू' कह्यो - 'थांनू बाई भीतर बुलावै छै ।' ताहरा कह्यो - 'जी, पछै प्राईस ।" ताहरा दोलै कह्यो- 'पर्छ नही, पहली आवो । काई माहरी वात कहसी । 20 ताहरा ग्रायो । ताहरां माहै तेनैि कह्यो - 'जी, वात सुणो ।' ताहरां वात सुणणनै प्राघो " ग्रायो। ताहरां तरवार कटारी काढि लीधी 12 ग्रर आप बाहिर आई । छोकरी कपाट ग्राडा दिया । ताहरां आफळियो ।1 कह्यो- 'भोजाई, कासूं कियो ? हू आपच कर मरीस । 25 ताहरां कह्यो - 'चुप करो ।' ताहरां गोविंद कवियो - चारण हूंतो मांहै। 16 ताहरां हमीर कह्यो–'रे दोला ! चारण ऊबरे ।' कह्यो – 'जी, क्युकर ऊबरे ? 17 कह्यो - 'ज्युं जांणै त्युं उबार ।" ताहरां दोले कह्यो– 'गोयंदजी थे सीरावणी करो ? 19 ताहरां चारण कह्यो - ' वाह वाह ।' ताहरां हमीर चारणनूं लेजायनै मिठाई पुरसी" । चारण तो जीमण बैठो । ताहरां मोहण दहियो वरस १५ मांहे छे, तिकै ढाल तरवार ले जायनै आपरी मा आगे नांखी । कह्यो – 'मा ! म्हे हथियार युंही 20 I घोडे और हाथियोंका मूल्य लिखो जा रहा है । 2 कागज । 3 जो घोड़ा चार सौ रुपयों की कीमतका है उसकी कीमत चालीस रुपये लिखते है और जो एक हजार की कीमतका है उसकी कीमत एक सौ रुपये लिखते हैं । 4 उसने बातको जान लिया । 5 अव कैसे बचे ? 6 नही बचाते हो तो मैं हल्ला करती हू कि धोखा है, नही तो उसे 7 उसको । 8 तुमको | 9 पीछे आऊगा । 10 हमारे सवधमे कुछ बात कहेगी । II आगे । 12 निकाल ली । 13 दासीने किंवाड़ जड़ दिये । पछडा ( तडफड़ाया ) 15 मैं पछाड खा कर ( तड़फडा कर) मर जाऊगा । कविया चारण गोविंद भी भीतर था । 19 गोविन्दजी ! तुम नाश्ता करो । वचा लो । 14 तब 16 तब 17 कैसे बचे ? 18 जैसे हो तैसे बचाओ । 20 परोसी, परोस दी ।

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