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मुहता नेणसीरी ख्यात
[ २५१ सारा ही ठाकुर बोला रह्या । मनमें सोच हुवो । पछे हालिया । पड़िहारे ग्राय पहुता ।
पडिहारे जायनै ठाकुर प्रधाननू कह्यो । ठाकुर प्रधान प्रलोच करनै कह्यो - 'जु ईयै ठाकुरांणीरा मोजडा म्हांसूं ऊपड़े नही ।" तिवारै रात कागळ लिख गांव बधायो नै कह्यो - ' ईयै रजपूतांणीरा गरजू म्हे नही ।'' प्रभात हुवै रजपूताणी कागळ वाचियो । कोटेची रजपूतांसू कहायो - 'ठे इसी वात छै ।" पछे कोटेचा सिरदारा आदमी मेल्ह आपरी दोकरी बुलाय लोधी ।"
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पछै आ वात रावळ मालैजीरै हजूर हुई - 'जु खाधरै वई एक रजपूत रजपूतांणी छोडी ।" महेवरे दरबार मांहै इसी बात हुई । " ताहरां रावळ मालोजी कहै छै - 'ग्रो रजपूत चूको । ' उवै रजपूताणीरें पेटरा इसा बळवंत, नाड़ जोधा हुवत, जु कोटांरा किमाड़ भांजे । भूतां दईतांसू लडै । जीवता सीह पाकड़े ।'
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ताहरां रांणो ऊगमड़ो ईदो बहेलवैरो धणी, रावळ मलीनाथरो चाकर । सु वै ठाकुर दरबार माहै वात सुणी । अर पछै ऊगमसी आदमी कोटेचां आगै मेल्हियो । वीनती कराई – 'थांहरी बेटी मोनू दो ।' ताहरां कोटेचा प्रापरी बेटी ऊगमसी ईंदैनू दीधी । ऊगमसी कोटेचीनू घरे घाली । 22* घणो हरख हुवो ।
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1 तब सभी ठाकुर चुप रह गये ( चकित हो गये । ) 2 फिकर हुथा । फिर रवाना हो गये और पडिहाराको आ पहुँचे । 3 ठाकुर और प्रधानने परामर्श करके कहा कि इस ठकुरानीकी जूतियें हमसे नही उठे ( इतना खाने वालीको हम वरदाश्त नही कर सकते । ) 4 उस दिन रातको पत्र लिख कर श्रादमीके साथ गावको बँधवाया और कहा कि इस राजपूतानीकी हमे श्रावश्यकता नही । 5 प्रभात होने पर ( उस श्रादमीसे लेकर ) राजपूतानीने भी उस पत्रको पढा, तव कोटेचीने भी राजपूतो ( पीहर वालों) को कहलवाया कि यहा ऐसी बात हो गई है । 6 फिर कोटेचा सरदाराने आदमी भेज कर अपनी पुत्रीको बुला लिया । 7 फिर यह बात रावल मल्लीनाथजी के पास पहुची (दरवारमे फैली ) कि खाने की बात के लिए एक राजपूतने, राजपूतानी ( अपनी पत्नी ) को छोड दिया है । महेवेके दरवार मे ऐसी चर्चा चली । 9 इस राजपूतने भूल की । TO उस राजपूतानीकी कोखसे ऐसे वलवान, नम्र जोधा उत्पन्न होते जो कोटोके किवाड़ तोडे, भूत और दैत्योसे लडे और जीवित सिंहोको पकडे | 11 और पीछे ऊगमसीने कोटेचोके पास श्रादमी भेजा और विनयपूर्वक कहलवाया कि तुमारी बेटीको मुझे दे दो । J2 ऊगमसीने कोटेचीको अपने घर मे डाली ।
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पाठान्तर -- * १ घरे वाळी । २ घरे वासी ।