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मुहता नैणसीरी ख्यात
[ २५५ उघडै । ताहरां सिखरो तमकि अर घोड़े असवार हुवो।' ताहरां झोटिंग हाथी हुय प्राडो आय फिरियो । सबळा रोड़ा-झोड़ा हुआ । ताहरां सिखरै झटको वाह्यो सु हाथीरी सूड खिर पडी। बांठ-बांठ रूंख-रूख चीस हुई । असवार २ तो, वांसै मेल्हिया हुता त्यां माहिला मर गया ।' असवार २ मुरछागत हुवा।"
ताहरां रावळजी असवार ४ प्रभाति वळे मेल्हिया।' आगै आइ देखै तो घोड़ा कायजै कियां फिरै छै अर असवार नही । जणा २ ससकता लाधा ।' उणांन आणिया । रावळ मालैजी परमेश्वररो नाम लेअर हाथ फेरियो । दिने दस-बारह बोलिया।11 ताहरां वात सारी ही जिसी दीठी तिसी कही ।12
रावळजी सिखरैजीनू पूछियो-'जु उण झोटिंगसू धको हुवो ?13 ताहरां सिखरै कह्यो-'मिळियो तो खरो पण धको काई हुवो नही।14
यु सिखरो बहेलवो गयो रहै ।।
इति सिखररी वात सम्पूर्ण ।
I तब सिखरा लपक कर घोडे पर सवार हो गया। 2 जवरदस्त लडाई हुई। 3 तब सिखराने तलवारका प्रहार किया सो हाथीकी सूड कट कर गिर पडी। 4 (हाथीकी चिंघाड़ इतनी जोरसे हुई कि) जंगलका प्रत्येक वाठका (क्षुप) और वृक्ष चीस उठे (हिल गये।) 5-6 पीछे जो सवार भेजे थे उनमेसे दो तो मर गये और दो मूच्छित हो गये । 7 फिर भेजे । 8 आगे आकर देखते है तो घोडे तो कायजा किये हुए फिर रहे है परन्तु सवारोका पता नही। 9 दो जने सिसकते हुए मिले। 10 उनको घर ले प्राया। II रावल मल्लीनाथजीने परमेश्वरका नाम लेकर उनके ऊपर हाथ फेरा तव कही दम बारह दिनोंमें वोले। 12 तब सभी बात जैसी उन्होंने देखी वैसी कह सुनाई। 13 उस झोटिंगसे झपट हई क्या ? 14 मिला तो सही, परन्तु ऐसी कोई झपट नही हुई। 15 इस प्रकार सिखरा बहलवे गया हुआ रह रहा है ।