Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 03
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 267
________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २५६ सोळकियांनू कह्यो - 'थांहरो वैर ऊदै कना लू, थांहरी बहन मोनू द्यो तो ।' ताहरां आा वात सोळकणी सुणी, ताहरां सोळकणी कहाडियो'मेळा ! म्हारो भरतार, जेठ इसड़ा नही सु तियारी बैर तूं ले जावँ अर उवान् पाल अर आवै । 2 ताहां सोळकणी सासरे बांभण मेल्है कहाडियो - 'ओ मेळो सेपटो ई विधवै छै । थे जेठजी ! ईयैरा भली विध हीडा करजो ।" ताहरा बांभण जाय वालसीसर मै समचार कह्या, ताहरां उवा ही ₹ सांजत हुवे छे। " 5 वालसीसर रै एक दिनरो समाजोग छै । सेपटो मंळो खानाजाद काछी चढिनै खडिया ।" एकल असवार चढ खडिया | तळाव जायने उतरियो । आगे एवाळिया आयनै तिकां एवाळियां हिमायचा भांगरा ( ? ) नाखिया छै । तीरधणियां मूकिया छै ।" ताहरा मेळं पूछियो - 'कठारा एवड ? 8 ' म्होटा बाकरा ? " अठै कोई रजपूत वसै छै किना नही ? 10 एवा - ळिया कह्यो - 'ऊगमड़ेरे बारह विरद । " काय खेडा बाकरा मरे छं, काय प्राणो प्रावे ताहरा मरे छे । बीजूं नहीं मरे छे । विके नही छे । 12 ताहरा मेळे कह्यो - 'ठाकुर ! बाकरो एक मोनू द्यो तो म्हे ही आज थांसू ं वातां करा, बैसा । 13 ताहरां एवाळां 14 कह्यो - 'लोजै राज !' 1 ऊभा छै । 6 I तुमारी वहिन मुझको दो तो तुमारा वैर मैं ऊदेसे ल । 2 तव सोलकिनीने कहलवाया कि मेला । मेरा पति और जेठ ऐसे नही हैं सो तू उनकी स्त्रीको ले जाये और उनके तेरे पीछे चढने पर तू उनको रोककर ( मारकर ) सकुशल चला जाये । 3 तव सोलकिनीने ब्राह्मणको ससुराल भेज कर कहलवाया कि मेला सेपटा इस इरादेसे श्रा रहा है सो जेठजी । श्राप इसकी खातिर भली प्रकार करे । 4 ब्राह्मणने वालसीसर जाकर जब यह समाचार कहे तब उधर भी तैयारी होने लग रही है । 5 मेला सेपटा खानाजाद कच्छी घोड़ी पर चढ कर चला । ० श्रागे गडरिये भी श्राकर खडे है ( जमीन पर ) रखे हैं । 8 रेवढ कहा के ? 9 ये इतने बडे करे ? राजपूत भी वसता है किम्वा नही ? II ऊगमड को बारह विरुद है । 12 या तो वाहर पर ( चढाई करने पर ) बकरे मारे जाते हैं या कोई पाहुना श्राये तो मारे जाते हैं, नही तो नही मारे जाते है और वेचे भी नही जाते है । 13 एक वकरा मुझको भी दो तो हम भी तुमसे यहा बैठ कर आज बातें करे । (तुमारे साथ बैठ कर उसे बनाएँ और खाएँ ।) 14 गडरियेने | । 7 तीर कमान TO यहा कोई

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