________________
सूर्य
॥ श्री गणेशाय नमः ॥ अथ राठोड़ारी वंसावली लिख्यते सूर्यवस प्रसूत-राठोडान्वयावतस-महाराजाधिराज-महाराजा श्री अनोपसिंघजी कस्य वसावळी । ___ महाराजाधिराज महाराजा श्री सूरतसिघजी परत लिखाई'श्री आदनारायण
शावस्त ब्रह्मा
वृहदश्व
१४ मरीच
कुवलयाश्व (अस्यैव कश्यप
नामधुधुमार इति) १५
दृढाश्व श्राद्धदेव
हरियश* इक्ष्वाकु
निकुभ विकुक्षि
१८ अनेना
बर्हणाश्व विश्वगंध
कृशाश्व इंद्र
सेनजित युवनाश्व
युवनाश्व (द्वितीय) २२ 1 सूर्यवशमे उत्पन्न राठोडान्वयावतंश महाराजाधिराज महाराजा श्री अनुपसिंहजीकी वशावली, जिसे महाराजाधिराज श्री सूरतसिंहजीकी प्रतिसे लिखवाई । [अन्वय=वश । अवतश=(१) भूषण, (२) सबसे श्रेष्ठ । परत = (१) स्वयं, (२) प्रति, नकल, (३) परतः, दूसरेसे । (४) पीछेसे । (५) पुनः, फिर । (६) किन्तु, इत्यादि ।]
महाराजा सूरतसिंहका राज्यकाल वि० स० १८४४से प्रारभ होता है और ख्यात. लेखक नैणसीकी मृत्यु वि० स० १७२७मे हो जाती है। अत नैणसी महाराजा अनुपसिंह ( राज्यकाल वि० स० १७२६-१७५५) के आगे उल्लेख ही नही कर सकते । इमसे ऐसा प्रतीत होता है कि वशावली बादमे लिखी गई है। परन्तु यह मिलती सभी प्रतियो मे है। इससे मालूम होता है (और जैसा कि 'परत' शब्दके विभिन्न अर्थों पर विचार करते हैं तो यह अनुमान होता है) कि महाराजा सूरतसिंहके समय या बादमे वशावलीका मिलान किया गया है और तत्पश्चात् शीर्ष-वाक्यमे महाराजाधिराज महाराजा श्री सरतसिंहजी परत लिखाई' जोड कर वशावलीमे पागे नाम लिख दिये और लिखते गये। सभी प्रतियोकी मूल बीकानेरकी अनप सस्कृत लाइब्रेरीकी प्रतिमे तो ऐसा परिवर्धन (आगेके नामोका भी) स्पष्ट नजर पाता है । अतः यह स्पष्ट है कि नैणसीने यह वशावली महाराजा अनुपसिंह तक ही लिखी है।] 2 श्री आदिनारायण । पाठान्तर--(१) श्रावस्त, (२) श्रीवत्स । *(१) हरिप्रश्व, (२) हरिताश्य ।
rrr-dur D७ ० ० ०
१२