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मुहता नैणसीरी ख्यात लोकां कहियो-'दीवांण | नरबद मागिया क्यु ही राखै नही ।।
ताहरा राणे कुभै कहियो-'म्हे मागा सो नरबद देसी ?" ताहरां फेर लोका कहियो-'जोवै दीवाण ! देसी । तिके दिन नरबदजी रांणोजीरै मुजरै ना पाया । डेरै हुता। ___ तद राणोजी प्रापरो खवास नरबदजोरै डेरै मेल्हियो नै खवासनू कहियो-तू यू कहीजै-'दीवाण था पासा आख मागी छै ।'' खवास नरवदजीनू कहियो-'दीवाण थां पासा प्राख मागी छै ।' ताहरां नरवदजी कहियो-'भला, देस्या ।" ताहरा खवासरी निजर टाळ पसवाड़े भळको पडियो हुतो, तैसू उकासनै डोळो रुमाल मे धाल दीन्हो । ताहरां खवासरो मुह भूडो हुवो।' दीवांण कहियो हुतो खवासनू–'नरबद आख काढे तो मतां काढण देई । सु नरवदजी तो प्रांख काढि हाथ दीधी । खवास ले जाय आख दोवाणनू दीधी।।
ताहरा दीवाण अांख देखनै वडो सोच कियो । घणा पिछताया। पछै दीवाण नरवदजीरै डेरै पधारिया, वडो सिसटाचार पडवज कियो । पछै नरबदजोनू राणेजी दोढो पटो दियो । ईयै विध राणैजीनू नरवदजो आख दीधी।16
___ इति नरवदजी राणे कुभेनू प्रख दीधी तिणरी वात सपूर्ण
1 तव लोगोने कहा कि दीवान | नरवद मागने पर कुछ भी अपने पास नही रखता। 2 हम मागें मो नरवद दे देगा? 3 तव लोगोने कहा चिरजीवी रहो दीवान । देगा। 4 उस दिन नरवदजी राणाजीको मुजरा करनेके लिये नही आये थे। 5 अपने डेरे (मकान) पर ही थे। 6 तव राणाजीने अपने खवासको नरवदजीके डेरे भेजा और खबासको कहा कि तू यो कहना कि दीवानने तुम्हारे पाससे आख मगवाई है। 7 अच्छी वात है, देगे। 8 तब खवामकी नजर बचाकर एक ओर जो भळका पडा था, जिससे पाखका कोया निकाल करके हमालमे डालकर दे दिया (भळको=एक शस्त्र)। 9 खवासका मुह उतर गया। 10 दीवान (राणाजीने) तो उमे कहा था कि यदि नरवद प्राव निकाले तो मत निकालने देना ! 11 सो नरबदाजीने तो प्राख निकाल कर हाथमे देदी। 12 दीवानने पास देयक बदा फिक्र किया। 13 बहुत पश्चाताप किया। 14 फिर दीवान नरवदजीके देरे पर गो, बडे गिण्टागर और महानुभूतिके माथ उनके वीरतापूर्ण त्यागकी प्रशसा एव दुन प्रगट किया। 15 पीछे राणाजीने नरवदजीका पट्टा ड्योढा कर दिया। 16 इस प्रसार नरबदलीने राणाजीको पास निकाल कर देदी ।