Book Title: Mahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Author(s): Mahapragya Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 15
________________ महावीर की साधना का रहस्य पानी तरल है। ठंड के एक बिन्दु पर वह बर्फ हो गया। पहले पानी था, अब बर्फ है । पानी और बर्फ-दोनों एक नहीं हैं। बर्फ पानी से बनी है, किन्तु पानी और बर्फ एक नहीं हैं। आप पानी के गिलास में वर्फ की एक डली को डालिए, पानी अलग रहेगा और बर्फ अलग रहेगी। वह डूबेगी नहीं, पानी के ऊपर रहेगी। बर्फ ऊपर है और पानी चारों ओर फैला हुआ है । बर्फ का स्वरूप अलग लग रहा है और पानी का स्वरूप अलग लग रहा है । हमारा मन भी न जाने कितनी बार एक बिन्दु पर पहुंचकर बर्फ बन जाता है । मन में कोई कल्पना उठती है। उसके बाद वह इच्छा बनती है । इच्छा आशा और आशा वासना बन जाती है। वासना बनी कि बर्फ बन गयी। फिर आदमी अलग हो गया। वासना अलग हो गयी। वह आदमी के भीतर है, पर आदमी अलग दिखाई देता है और वासना अलग दिखाई देती है। हर आदमी के दो रूप हैं-द्रव्यात्मा और भावात्मा। द्रव्यात्मा उसका अस्तित्व है । भावात्मा अस्तित्व के सागर में उठने वाली लहरें हैं। अस्तित्व के बिना परिणमन नहीं होता। जल न हो तो तरंगें नहीं हो सकतीं । तरंगें तब ही होती हैं जब कि जल है। आपने कभी नहीं देखा होगा कि जल तो नहीं है और तरंगें हैं। हमारा अस्तित्व न हो तो हमारी कोई परिणति नहीं हो सकती। हमारी परिणति होती है, हम बदलते हैं, उसका मूल है हमारा अस्तित्व । दुनिया में कोई भी अस्तित्व ऐसा नहीं है, जहां परिणमन न हो और कोई भी परिणमन ऐसा नहीं हैं, जिसके नीचे अस्तित्व न हो। अस्तित्व और परिणमन-दोनों साथ-साथ चलते हैं। अस्तित्व अव्यक्त रहता है और परिणमन व्यक्त होता है । जिसे हम देखते हैं, वह परिणमन है । अस्तित्व को हम इन चर्म-चक्षुओं से नहीं देख पाते। तो फिर हमारा साध्य क्या हैपरिणमन या अस्तित्व ? व्यक्ति के प्रति हमारे मन में जिज्ञासा नहीं हैं । उससे हम बहुत परिचित हैं । अस्तित्व से परिचित नहीं हैं। उसके प्रति हमारे मन में जिज्ञासा है । हम उसका साक्षात् करना चाहते हैं । हम बहुत रूपों में बदलते-बदलते श्रान्त हो चुके हैं। हम विश्रान्ति चाहते हैं। बहुत रूपों में होने की अपेक्षा केवल 'होना चाहते हैं । अस्तित्व का अर्थ केवल 'होना' है और केवल 'होने' का मतलब शेष को खोना है । जब तक हम शेष को नहीं खो देंगे तब तक केवल "होने' की स्थिति में नहीं पहुंच पाएंगे। हमारा अस्तित्व वासना की शैवाल से ढंका हुआ है । भीतर के ज्योति

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