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સુનંદાબહેન વોહોરા
९. पदार्थ पदविग्रह, चालना एवं प्रत्यवस्थान इन सुप्रसिद्ध संज्ञाओं के स्थान पर वाक्यार्थ,
महावाक्यार्थ एवं ऐदंपर्यार्थ जैसे अभिनव संज्ञाओं का उपयोग श्री हरिभद्रसूरिजी के पूर्व किसी
ने किया हो, ऐसी जानकारी नहीं है । १०. सन्मति प्रकरण पर श्री मल्लवादिसूरिजी ने टीका रची थी, इस बात को सर्वप्रथम निर्देशित श्री
हरिभद्रसूरिजीने की, वैसे ही उस टीका में से अवतरण निकालने वाले श्री हरिभद्रसूरिजी प्रथम
ही होंगे। ११. विहरमान श्री सीमंधर स्वामीजी ने श्रीसंघ पर कृपा कर 'चूलिका' भेजने की बात सूचित
करनेवाले प्राय: श्री हरिभद्रसूरिजी प्रथम होने चाहिये । १२. छेदसूत्र एवं मूलसूत्र की संख्या अनुक्रम से ६ एवं ४ दर्शानेवाले श्री हरिभद्रसूरिजी प्रथम थे । १३. धर्म की परीक्षा सुवर्ण की तरह कष-ताप एवं छेद द्वारा करने की तार्किक दृष्टि देनेवाले जैनाचार्य
के रूप में श्री हरिभद्रसूरिजी प्रथम थे, ऐसा उपलब्ध साहित्य से पता चलता है । १४. न्याय का निर्देश करनेवाले ग्रंथकारों में श्री हरिभद्रसूरिजी का प्रथम पंक्ति में स्थान है । १५. चैत्यवंदन विधि दर्शानेवाली आद्य उपलब्ध कृति श्री हरिभद्रसूरिजी कृत 'ललित विस्तरा' है, ऐसा आगमोद्धारक श्री सागरानंदसूरिजी का मानना है ।
संदर्भ : श्री हीरालाल र. कापडिया लिखित हरिभद्रसूरि