Book Title: Mahavir Jain Vidyalay Shatabdi Mahotsav Granth Part 02
Author(s): Kumarpal Desai
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 300
________________ पंजाब में जैन धर्म का उद्भव, प्रभाव और विकास 281 ४. दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने जब खालसा फौज का सृजन किया तो बीकानेर आदि से जो ओसवाल महाजन उनकी सेना में शामिल हुए, वे बाद में पंजाब में सिद्ध या संधु कहलाये । ५. सामाना की मूर्तिपूजक बिरादरी को महाराजा पटियाला द्वारा कहे जाने पर वहाँ के गुरुद्वारा का सम्पूर्ण जीर्णोद्धार स्थानीय प्रेम सभा के साथ १९४५ में कराया । सत्य एवं अहिंसा के पुजारी होने के नाते पंजाब में शतकों से जैन लोग भावडे (भाव बड़े) कहलाते थे । अनेक गली एवं बाजार, जहाँ जैन लोग रहते थे अथवा व्यापार करते थे, अब भी गली अथवा बाजार भावड्यां कहलाते हैं। गांधीजी के आवाहन पर पंजाब के अनेक जैन जेलों में गए तथा बहुतों ने सारी आयु खादी ही पहनी। काँगड़ा (हि.प्र.) के शासक राजा शुरू से ही जैन धर्म के प्रति उदार व श्रद्धालु रहे हैं । इनके पूर्वज राजा सुशर्मचंद्र ने काँगड़ा किला में भगवान आदिनाथ व नेमिनाथ का मंदिर बनवाया था। ९. नाभा के राजा हीरासिंह तथा मालेरकोटला के मुस्लिम नवाब हमेशा ही आचार्य श्री विजयवल्लभसूरि के दर्शनों को आते रहे । Inter-relations पंजाब के जैनों में ओसवालों व खंडेलवालों में आपसी रोटी-बेटी का व्यवहार करीब ८०-९० साल पहले शुरू हुआ। परंतु अग्रवाल जैनों के साथ इस व्यवहार की कोशिशें अभी चल रही है । उच्च शिक्षा द्वारा ऊँचे पदों और ग्लोबल नौकरियों पर पहुँचनेवाले नई पीढ़ी के युवक-युवतियों में अब कहीं-कहीं अन्तर्जातीय विवाह भी होने लगे हैं । समाज की ही सीमाओं में शादी करने के लिए अब मन्दिरमार्गी या स्थानकवासी का कोई भेद नहीं रह गया है । Conclusion . . ____ जहाँ आचार्य विजयवल्लभसूरिजी ने मंदिरमार्गी समाज को संगठन, शिक्षा और मध्यम-वर्ग-उत्कर्ष का स्थायी संदेश दिया, वहीं स्थानकवासी समाज को भी वर्तमान आचार्य (डॉ.) शिवमुनिजी महाराजशिक्षा, सहअस्तित्व एवं धार्मिक उदारता का बोध दे रहे हैं । - उद्योग, व्यापार, स्वास्थ्य व उच्च शिक्षा तथा सार्वजनिक सेवा के नए आयाम बनाते हुए पंजाब का पूरा जैन समाज अब अन्य प्रदेशों के जैन-जैनेतर समाजों के साथ कंधा व कदमताल मिलाते हुए प्रगतिशील हैं।

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