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महेन्द्रकुमार मस्त
विद्यालय, बोर्डिंग तथा युनिवर्सिटी खोलने का उपदेश देनेवाले, जैनों के चारों संप्रदायों में ये सर्वप्रथम जैन आचार्य थे । मुम्बई का श्री महावीर जैन विद्यालय इन्ही की देन है, जिनकी आज १२ शाखाएं हैं। अनेक विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भिजवाया । ____ पंजाब की भूमि को उपकृत करनेवाला अगला नाम है महत्तरा साध्वी श्री मृगावतीजी महाराज का। वे लहरा (ज़ीरा) के गुरुधाम तीर्थ के प्रणेता तथा श्री वल्लभ स्मारक दिल्ली की आद्यप्रेरक थी । काँगडा (हि.प्र.) में आठ महिने रहकर सरकारी अधिकार में रही आदीश्वर प्रभु की प्रतिमा की पूजा व आरती का अधिकार प्राप्त किया । आपको काँगडा तीर्थोद्धारिका कहा जाता है । सन १९८६ में श्री वल्लभ स्मारक पर ही आप का देवलोक गमन हुआ । Treasury of Scriptures/Books
पंजाब के प्राय: सभी नगरों के जैन मंदिरों, उपाश्रयों व यतियों के डेरों में उच्च श्रेणी के शास्त्र तथा हस्तलिखित शास्त्र-भण्डार थे । गुरुदेवों के उपदेश से सभी स्थानों के हस्तलिखित व प्रिंटेड ग्रंथभण्डार अब श्री विजय वल्लभ स्मारक - दिल्ली में अवस्थित भोगीलाल लहेरचंद इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्डोलोजी में संगृहीत एवं सुरक्षित हैं तथा शोधार्थियों के काम आ रहे हैं । डॉ. बनारसीदास जैन ने कई स्थानों के सूत्रों-शास्त्रों के सूचिपत्र तैयार करके पंजाब युनिवर्सिटी, लाहोर से प्रकाशित करवाये थे । Creation of Jain Literature/Persons
पंजाब आदि क्षेत्रों के जैन यतियों, श्रावको, आकाओं व मुनियों ने अनेक जैन ग्रंथ, शास्त्र व सूत्र लिपिबद्ध किये। वैद्यक, ज्योतिष, व्याकरण, कथा, पंचतंत्र तथा पैदल विहारों का विवरण आदि अनेक विषयों पर समृद्ध साहित्य की रचना की । यतियों द्वारा रचित वि. सं. १४८४ का योगिनीपुर (दिल्ही) में उपाध्याय धर्मचंद का ‘श्रीपाल चरित्र' बहुत पुराना कहा जा सकता है । सामाना के भण्डार का स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्र भी अपनी तरह की अनुपम कृति है । ये सभी (कई हज़ार) कृतियाँ भी अब विजय वल्लभ स्मारक- दिल्ली में हैं।
आचार्य विजयानंदसूरि (आत्मारामजी) और उनके शिष्य आचार्य विजय वल्लभसूरि ने अपनी गद्य व पद्य रचनाओं के लिये राष्ट्रभाषा हिंदी को अपनाया । विजय वल्लभसूरिजी ने अनेक बडी पूजाओं की रचना की । 'वल्लभ काव्य सुधा' में उनके स्तवन, पद, सज्झाय, भजन आदि छप चुके हैं । उनकी गद्य रचनाओं में 'भीम ज्ञान त्रिंशिका', 'गप्प दीपिका समीर', 'जैन भानु' तथा विशिष्ट रचना 'नवयुग निर्माता' आदि है ।
मालदेवसरि विक्रम की १६वीं सदी में हए । इनके दो-तीन चातर्मास चण्डीगढ़ के पास पिंजौर में हुए । ये उच्चकोटि के कवि थे । संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी व हिंदी में इनकी अनेक कृतियाँ हैं ।
यति मेघराज (फगवाडा) की अनेक रचनाएँ उपलब्ध हैं । मेघमाला, मेघ विनोद, गोपीचन्द कथा, दानशील तप भावना, प्रात:मंगल पाठ चौबीसी, पिंगल शास्त्र, मेघ विलास तथा मेघ मुहूर्त ।
कवि हरजस राय (कसूर) : ये ओसवाल गादिया गौत्रीय श्रावक थे । इनकी रचनाएँ - गुरु गुण