________________ मीमांसकीय . लोहामंडी प्रागरा से छपी स्वाध्याय की किताब "मंगलवाणी" जिसका संकलन स्थानकमार्गी अखिलेश मुनि ने किया है, इस किताब के ग्यारह संस्करण द्वारा माज तक जिसकी 60 हजार से भी ज्यादा प्रतियां मुद्रित हो चुकी है / इस किताब में "बृहद् शांति" नामक स्तोत्र को संक्षिप्त करके छपवाया गया है। यानी मूर्तिपूजा समर्थक पाठों को मागे पीछे से हटाकर "बृहद् शांति" को संक्षिप्त कर दिया है। स्थानकमार्गी अमोलक ऋषि ने उनके माने हुए 32 आगमों का हिन्दी अनुवाद किया है / श्री राजप्रश्नीय सूत्र में देवता द्वारा जिन प्रतिमा पूजन का वर्णन पाया है, वहां धूप देने के विषय में मूलपाठ यह है कि.......... "धूवं दाउणं जिणवराणं" टीका-धूपं दत्वा जिनवरेभ्यः / पार्श्वचन्द्र सूरिकृत टब्बा-धूप दीधु जिनराज ने / लोकागच्छियों की मान्यता-धूप दिया जिन भगवान को। किन्तु स्थानकपंथी अमोलक ऋषि ने श्री राजप्रश्नीय सूत्र कथित पाठ को परिवर्तन करके लिख दिया है कि "धूवं दाउणं पडिमाणं" . पौर अर्थ किया-"धूप दिया प्रतिमा को।" फिर प्रतिमा का अर्थ जिनप्रतिमा न करके कामदेव की प्रतिमा कर दिया है। मूल