________________ हजारों रुपयों की थैली अर्पण की जाती है। गुरु के नाम पर हजारों भक्तों के लिये सरस भोजन प्रादि के प्रारम्भ-समारम्भ रूप महा हिंसा, वे भक्त नियम बद्ध न होने से रात्रि भोजन का पाप एवं ठाठ-प्राडम्बर सब कुछ होता है, सिर्फ भगवान महावीर का नाम, भगवान महावीर की प्राज्ञा और भगवान महावीर की प्रतिमा-तस्वीर ही कहीं नहीं दिखाई देती ! अन्य के प्रागम कथित शास्त्रीय धर्म अनुष्ठानों को आडम्बर और हिंसा कहने वालों के लिये यह सब अत्यंत लज्जास्पद है। प्राचार्य श्री से यही प्रार्थना है कि प्रागे शायद वे "जैनधर्म का मौलिक इतिहास-खंड-३” लिखेंगे, तब सत्य लिखें जिससे साम्प्रदायिक द्वेष मादि बढ़े नहीं और समय एवं सम्पत्ति का दुरुपयोग न होवे। "कल्पित इतिहास से सावधान" नामक इस मीमांसा के लिये नव्यन्याय के प्रखर विद्वान् मुनिराज श्री जयसुन्दरं विजयजी महाराज ने "पुरोवचन" एवं विद्वान् मुनिराज श्री गुणसुन्दर विजयजी महाराज ने " दो शब्द" लिख दिये हैं, जिनका योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। - पूज्य प्राचार्य श्रीमद् विजय विक्रमसूरिजी महाराज साहब और पूज्य प्राचार्य श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरिजी महाराज साहब का मेरे पर विशेष उपकार और कृपादृष्टि रही है, जिसके कारण ही मेरी तबियत ठीक न होते हुए भी प्रस्तुत ग्रन्थ का सम्पादन कार्य मैं कर सका हूं। / - श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघको विनती है कि पूज्य प्राचार्य श्री विजयानन्दसूरिजी (मात्मारामजी महाराज ) लिखित “सम्यक्त्व शल्योद्धार", पूज्य भाचार्य श्री लब्धिसूरीश्वरजी महाराज रचित