Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 10
________________ अत्यन्त स्तुत्य है। "मूर्तिपूजा आगमिक है" ऐसा परिशिष्ट जोड़कर मुनिश्री ने मीमांसा को प्रामाणित भी किया है। प्राचीन साक्ष्य उपलब्ध होते हुए भी मूर्तिपूजा जैसे विषय को विवादास्पद बनाये रखना अशोभनीय कृत्य है / प्राचार्य श्री द्वारा रचित इतिहास पुरातत्त्व और शोध के विद्यार्थियों को मार्ग दर्शन देने में बिल्कुल असमर्थ है। इसको जैन धर्म का इतिहास कसे कहा जा सकता है ? ... जैन शास्त्रों में मूर्तिपूजा के विषय में हजारों-लाखों उल्लेख मौजूद हैं / "प्रश्न व्याकरण" नामक प्रागम सूत्र में चैत्य यानी जिन मन्दिर की वैयावच्च-भक्ति कर्म निर्जरा का कारण है ऐसा कहां है। वषा Xxx अत्यन्त बाल दुब्बल, गिलाण वुड्ढ सर्वक / ... . कुलगण संघ चेइय? च णिज्जरट्ठी // 408 भावार्थ-प्रति बाल, दुर्बल, ग्लान, वृद्ध, तपस्वी, कुल-गण (साधु समुदाय ). चतुर्विध संघ और चैत्य यानी जिन मन्दिर-जिन प्रतिमा की वैयावच्च ( सेवा-भक्ति ) निर्जरा ( कर्मक्षय ) कारक होती है। व्यवहार सूत्र में यावत् जिनप्रतिमा के समक्ष भी पाप की मालोचना करने को कहा है, यथा 80xजत्येव सम्ममचियाइ चेइयाई पाणिज्जा। कप्प सेसस्स संतिए आलोइत्तए वा॥80 भावार्थः-प्राचार्य प्रादि बहुश्रुत गीलार्थ का संयोग न मिले / तो "चेझ्या" यानी जिन प्रतिमा के समक्ष जाकर मालोचना ( पाप को प्रगट ) करनी चाहिए।

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