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बीकानेर के व्याख्यान ]
लोए ।' अर्थात् शांतिनाथ भगवान् लोक में शांति करने वाले हैं। वाक्य बड़ा महत्त्वपूर्ण है । यह छोटा-सा वाक्य इतना पूर्ण है कि मानों सब ज्ञान इसी में समाप्त हो जाता है। शांति क्या है और वह किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है, इस विषय पर में कई बार कह चुका हूँ और आज फिर इमी विषय में कह रहा हूँ: क्योंकि शांति प्राप्त करना ही जगत् के प्राणियों का एकमात्र ध्येय है। __कई लोग विषमभाव-में पक्षपात में शांति देखते हैं। लेकिन जहाँ विषमभाव है वहाँ वास्तविक शांति नहीं रह सकती। वास्तविक शांति तो समभाव के साथ ही रहती है ।
वहुत-से लोग अपनी कुशल के आगे दूसरे की कुशल की कोई कीमत ही नहीं समझते । वे दूसरों की कुशल की उपेक्षा ही नहीं करते वरन् अपनी कुशल के लिए दूसरों की घोर अकुशल भी कर डालते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि शांति प्राप्त करने का मार्ग यह नहीं है । यह तो शांति के घात करने का ही तरीका है। सच्ची शांति तो भगवान् शांतिनाथ को पहिचानने से ही प्राप्त की जा सकती है ! जिस शांति में से अशांति का अंकुर न फूटे जो सदा के लिए अशांति का अन्त कर दे वही सच्ची शांति है। सञ्चो शांति प्राप्त करने के लिए 'सर्वभूतहिने रतः' अर्थात् प्रागी मात्र के कल्याण में रत होना पड़ता है।
कुछ लोग दुर्गापाट आदि करके, होम करके यहाँ तक कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com