________________
जैनविद्या
13
निमित्त कारण का सुपरिणाम कहा जा सकता है । परन्तु जहां दैवीय गुणों की व्यंजना हुई है वह कवि के अन्तरव्यक्तित्वजन्य गुणों का ही सुपरिणाम है। वाणी चरित्र की प्रतिध्वनि होती है । फलस्वरूप कवि के व्यक्तित्वपरक सभी गुणों का अभिव्यंजन उनके काव्य में परिलक्षित है । यही कारण है कि वीर कवि कृत जंबूसामिचरिउ अकेला और पहला काव्य है जिसने कवि को न केवल प्रसिद्धि के ऊंचे अद्रि तक ही पहुंचाया अपितु उसका अंतरंग भी प्रात्मतोष से भर दिया । प्रस्तुत काव्य में उनके व्यक्तित्वपरक जीवंत गुण सत्यवादिता, हृदय की निर्मलता, स्वाध्यायप्रियता, भुज-पराक्रमता तथा दयाभाव-प्रियता और भक्त्यात्मकता प्रादि मुखर हो उठे हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का गठन अनेक तत्त्वों के सम्मिश्रण से हुआ था । वह जीवन के पग-पग पर मिलनेवाले अच्छे-बुरे पक्ष को साथ लेकर चले थे । परिणामस्वरूप वीर कवि अनुभूति सम्पदा के पूर्ण धनी थे। उन्हें फूलों की समृणता और कंटकों के संताप का पूर्ण परिचय भी प्राप्त था। उनके व्यक्तित्व के आधारभूत तत्त्व जीवन के सम्पूर्ण भार को वहन करने में समर्थ थे । जीवन की हर भूमिका पर साधा हुआ उनका विलक्षण व्यक्तित्व विरोधी तत्त्वों की पूंजीभूत व्याख्या की आश्चर्यपूर्ण अभिव्यंजना थी।