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बुद्धिरसायण ओणम चरितु दोहड़ा
-कवि नेमि प्रसाद
'जनविद्या' पत्रिका के प्रारम्भ से ही संस्थान की घोषित नीति के अनुसार संस्थानान्तर्गत पाण्डुलिपि विभाग में प्राप्त अपभ्रंश भाषा की एक लघु किन्तु महत्त्वपूर्ण रचना का सानुवाद प्रकाशन किया जाता रहा है । प्रस्तुत रचना भी उसी क्रम की एक कड़ी है।
रचना दोहडा (दोहा) छन्द में निबद्ध है । जिस प्रकार संस्कृत कवियों को अनुष्टुप् तथा प्राकृत काव्यकारों को गाथा छन्द प्रिय रहा है उसी प्रकार अपभ्रंश भाषा के कवियों में दोहड़ा (दोहा)। इसका कारण है उसकी विभिन्न राग-रागिनियों एवं तालों में सरलतापूर्वक गेयता । इसके अतिरिक्त इसको कण्ठस्थ करना भी अधिक कठिन नहीं है। इसीलिए कृष्णपाद प्रादि बौद्धसन्तों ने अपने धर्म-प्रचार के लिए इस छन्द को चुना। जैनसन्तों यथा जोइन्दु, रामसिंह, देवसेन प्रादि ने अपनी आध्यात्मिक रचनाएं इसी छन्द में निबद्ध की। वृन्द, रहीम बिहारी मादि हिन्दी कवियों को अपनी रचनाओं के लिए दोहा छंद का प्रयोग करने की प्रेरणा भी अपभ्रंश की इन ही कृतियों से मिली यह निर्विवाद है ।
प्रस्तुत रचना मन्य दोहा-काव्यों की भांति मुक्तक न होकर रावण तथा मन्दोदरी के संवादरूप में है । भाषा सरल किन्तु अलंकारों, सूक्तियों, मुहावरों आदि से परिपूर्ण है । रचना