Book Title: Jain Vidya 05 06
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 24
________________ 18 जनविद्या भवदेव व शिवकुमार थे । उनका बड़ा भाई भवदत्त और सागरचन्द था। भवदेव के जीवन में स्वाभाविकता है किन्तु भवदत्त की कथा अनावश्यक है । वह प्रतिनायक के रूप में भी अंकित नहीं किया गया है। फिर भी उसके द्वारा भवदेव के जीवन में उतार-चढ़ाव और अर्न्तद्वन्द्व का चित्र अंकित किया जा सका है। जम्बूस्वामी की अनेक पत्नियों के पूर्व-जन्म प्रसंग भी कथाप्रवाह में कोई योग नहीं देते । जम्बूस्वामी का चरित्र कवि ने बड़े स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया है। उसके चरित्र का अच्छा विकास हुआ है। वह कभी विषय-वासनाओं की ओर प्रवृत्त होता है तो कभी विराग एवं त्याग की भावनाओं से संसारविरत होना चाहता है । जम्बूस्वामी के चरित्र विकास में कवि ने अपने कौशल का प्रदर्शन किया है। अन्य किसी पात्र के चरित्र का विकास कवि को इष्ट नहीं था। प्रस्तुत चरितकाव्य में कवि का उद्देश्य प्रतीक रूप में जम्बूस्वामी की कथा प्रस्तुत करना है । कवि ने राग और विराग का द्वन्द्व दिखाने के लिए सारी घटनाएं एवं जम्बूस्वामी की जन्मपरम्पराओं का वर्णन किया है । कवि ने स्पष्ट दिखाया है कि मनुष्य राग से ऊपर उठना चाहता है किंतु सांसारिक परिस्थितियां उसे ऊपर नहीं उठने देतीं । जम्बूस्वामी के जन्म-जन्मान्तरों का वर्णन करके कवि ने उसके चरित्र के द्वारा इसी बात को दर्शाया है। निष्कर्ष रूप में कवि ने यह सिद्ध किया है कि निरन्तर साधना के अनन्तर ही व्यक्ति अपने राग एवं सांसारिक परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर सकता है। यही निदान है, यही समाधान है। शिल्प-विधान जम्बूसामिचरिउ अपभ्रन्श चरितकाव्य परम्परा में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । इसमें अन्य अपभ्रन्श चरितकाव्यों की भांति ग्राम, नगर, अरण्य, सूर्योदय, सूर्यास्त, युद्ध, स्त्री सौन्दर्य, आदि का सुन्दर वर्णन मिलता है । इन वर्णनों में अनेक स्थल कवित्व के सुन्दर उदाहरण हैं । कवि वीर ने वर्णनों में प्राचीन सौष्ठववादी (अलंकारवादी) कवियों का भी अनुसरण किया है और बाण के अनुकरण पर श्लेषयुक्त शैली में प्रकृति का वर्णन किया है। उनका विन्ध्याटवी का वर्णन बाण की परम्परा में है। विन्ध्याटवी महाभारत की रणभूमि के समान थी। रणभूमि-रथसहित (सरह) और भीषण थी और उसमें हरि, अर्जुन, नकुल और शिखण्डी दिखाई देते थे । विन्ध्याटवी अष्टपदों (सरह) से भीषण थी और उसमें सिंह (हरि), अर्जुन वृक्ष, नेवले और मयूर दिखाई देते थे। रणभूमि-गुरु द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, श्रेष्ठ कलिंगाधिपति और उत्कृष्ट राजाओं से युक्त थी, बाणों से आच्छन्न और गजों से जित थी। विन्ध्याटवी बड़े-बड़े अश्वत्थ, आम्र, कलिंगतुल्य चार वृक्षों से युक्त थी, गज-गजित सरोवरों और महिषों से पूर्ण थी। वह विन्ध्याटवी लंका नगरी के समान थी। आदि आदि । इस प्रकार कवि वीर ने बाण की सी श्लिष्ट भाषा एवं वर्णन-शैली का प्रयोग करके अनेक स्थलों पर अलंकारों का चमत्कार प्रस्तुत किया है। ऐसे स्थलों पर भावग्रहण एवं रसोत्पत्ति कठिन हो गई है । इसी प्रकार का वेश्या-वर्णन भी है। जहां कवि ने श्लिष्ट शैली नहीं अपनाई है वहां उसकी भावाभिव्यक्ति मार्मिक बन पड़ी है । नारी सौन्दर्य का मामिक वर्णन निम्नांकित गाथा एवं दोहे में द्रष्टव्य है

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