________________
जनविद्या
5. काव्य के विविध अंग, रस-भाव 6. अंलकार-नियोजन 7. छंद 8. दोष व गुण याने दोष मुक्तता व गुणयुक्तता ।
संक्षेप में सभी काव्य और महाकाव्य के मूल्यांकन के गुण आ गये हैं। ये सब गुण इस महाकाव्य में यथास्थान पाये जाते हैं । कवि हृदय इस महाकाव्य को पढ़कर प्रानन्द-विभोर हो जाता है । वास्तव में यह काव्य का दैहिक रूप है, आन्तरिक रूप तो वे भाव व सिद्धांत हैं जिन्हें कवि पाठक के हृदय में चुपचाप प्रवेश कराता है और उसे अभिभूत कराता है।
सुनकर पंडितजी को धन्यवाद दिया कि उन्होंने चतुराई से 'जंबूसामिचरिउ' के सम्बन्ध में पूछी गई बातों का सरल व निर्मल भाषा में उत्तर दिया जिससे इस महाकाव्य का बाह्य और आन्तरिक रूप स्पष्ट उजागर हो गया।
1. वीर कवि कृत 'जंबूसामिचरिउ', संपादक--डॉ. विमलप्रकाश जैन, भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशन, प्रस्तावना-पृ. 43 । 2. वही, पृ. 111 3. वही, पृ. 14। 4. वही, पृ. 121 5. वही, पृ. 13। 6. वही, पृ. 131 7.. वही, पृ. 13। 8. वही, पृ. 811