Book Title: Jain Vidya 05 06
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
View full book text
________________
112
जनविद्या
तुम देव सव्वण्हु लच्छीविसालो अहं वण्णिऊणं न सक्केमि वालो। समुज्जोइयासोह वा तेयपूरो
न पुज्जिज्जए कि पईवेण सूरो। न ते वीयरायस्स पूयाए तोसो न वा संत वइरस्स निदाए रोसो। परं ते समुग्गीरियं देव नामं
पवित्तेउ चित्तं महं सुक्खथामं । तुमं पुज्जमाणस्य लोयस्स एसो महापुण्णपुंजम्मि सावज्ज लेसो। कणो जेम हालाहलस्सप्पसत्थो सुहासायरंदूसिउं नो समत्थो। अविग्यो तए देव सिट्ठो समग्गो तिलोयग्गगामीण भव्वाण मग्गो। पडतो जणो मोहकालाहिखद्धो किमो देव वायासुहाए विसुद्धो । तुमं पत्तसंसारकूवारतीरो
तुमं सामि संपुण्णविज्जासरीरो। तए नाणजोइए उद्दित्तमेयं
समुन्भासए चंदसूराण तेयं । मुहाभासयं दप्पणे पेक्खमाणा
मुहं चेव मण्णंति बाला प्रयाणा। तहा वत्थुरूवं अहं बुद्धिलुद्धा
सरूवं निरूवंति ते नाह मुखा। . तुमं झायमाणस्स नाणम्मि लोणं मणं होउ मे नाह संकप्पखीण ।
(1.18) तुमं (तुम्ह) 1/1 स देव (देव) 8/1 सव्वण्हु (सव्वण्हु) 1/1 वि लच्छीविसालो [(लच्छी)-(विसाल) 1/1 वि] अहं (अम्ह) 1/1 स वण्णिऊणं [(वण्ण)+ (इ)+ (ऊ)+ (णं)] वण्ण (वण्ण) 4/1 इ (अ) =वाक्यालंकार ऊ (अ)=सूचनात्मक णं (अ)=प्रश्नवाचक न (अ) =नहीं सक्केमि (सक्क) व 1/1 अक बालो (बाल) 1/1 ।
समुज्जोइयासोह [(सं) + (उज्जोइया)+ (सोह)] सं (अ) =खूब [(उज्जोइय+ स्त्री उज्जोइया) भूकृ अनि-(सोहा) 1/1] वा (अ) =तो भी तेयपूरो [(तेय)-(पूर) 1/1 वि] न (अ) =नहीं पुज्जिजए (पुज्ज) व कर्म 3/1 सक किं (अ)=क्या पइवेण (पईव)3/1 सूरो (सूर) 1/1।
न (अ) =नही ते (तुम्ह) 6/1 स वीयरायस्स (वीयराय) + 6/1 पूयाए (पूया) 3/1 तोसो (तोस) 1/1 वा (अ) =तथा संत (संत) भूक 6/1 अनि वइरस्स (वइर) 6/1 निदाए (निंदा) 3/1 रोसो (रोस) 1/1। + कभी कभी षष्ठी का प्रयोग तृतीया अर्थ में पाया जाता है। (हे. प्रा. व्या. 3-134)
परं (पर) 1/1 वि ते (तुम्ह) 6/1 स समुग्गीरियं [(सं)+ (उग्गीरियं)] सं = भली प्रकार से उग्गीरियं (उग्गीर-+उग्गीरिय) भूकृ 1/1 देव (देव) 8/1 नाम (नाम) 1/1 पवित्तेउ (पवित्त) विधि 3/1 सक चित्तं (चित्त) 2/1 महं (अम्ह) 6/1 स सुक्खथामं [(सुक्ख)-(थाम) 1/1]।
तुमं (तुम्ह) 2/1 स पुज्जमाणस्स (पुज्ज) वकृ 6/1 लोयस्स (लोय) 6/1 एसो (एत) 1/1 स महापुण्णमुजम्मि [(महा)-(पुण्ण)-(पुंज') 7/1] सावज्जलेसो [(सावज्ज) वि-(लेस) 1/1]। + कभी कभी सप्तमी का प्रयोग द्वितीया अर्थ में पाया जाता है। (हे. प्रा. व्या. 3-135)

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158