________________
जैनविद्या
123
___ वस्तुपाल-तेजपालरास, विद्याविलासपवाडो, कलिकालरास, दशार्णभद्ररास, स्थूलिभद्र बारहमासा ।
जम्बूस्वामी विवाहला की भाषा सरल राजस्थानी है। इसका मंगल पद्य द्रष्टव्य है, जिसमें वीर जिनेश्वर, गौतमगणधर और देवी सरस्वती का स्मरण किया गया है
वीर जिणेसर पणमीम पाय, गणहर गोग्रम मनिधरीम समरी सरसती कवि प्रणपाय, वीणा पुस्तक धारिणी ए। बोलिस जम्बूचरित रसाल, नवनव भाव सोहाभणुंभ
रयणह संख्या ढाल रसाल, भविमण भाविहिं सौभलुए ॥29 जम्बू चौपाई
जूनी गुजराती और राजस्थानी भाषा में मुनि हरिकलश ने वि. सं. 1621 के प्रास-पास उक्त काव्य की रचना की। मुनि हरकलश खरतरगच्छीय उपाध्याय देवतिलक के शिष्य थे 130
जम्बूस्वामीचरित्र
इसके लेखक पाण्डे जिनदास हैं। जम्बूस्वामीचरित्र में उन्होंने जो परिचय दिया है उसके अनुसार जिनदास प्रागरा निवासी ब्रह्मचारी सन्तीदास के पुत्र थे। जिनदास का समय ईसा की सोलहवीं शती है। यतः उन्होंने वि. सं. 1642 में उक्त काव्य रचा। लेखक ने अकबर के मंत्री टोडरशाह के पठनार्थ जम्बूस्वामीचरित्र की रचना की थी। इनकी अन्य रचनाएँ योगीरासा, जखडी, चेतनगीत, मुनीश्वरों की जयमाल, मालोरासा आदि हैं । जम्बूस्वामीचरित्र की भाषा सरल और सरस है। भाव विषयानुकूल हैं। उपदेशपरकता पाई जाती है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है जिसमें श्रेणिक के महावीर के समवसरण में पहुंचने का वर्णन है
मानस्थ्यम्भ पास जब गयौ, गयो मान कोमल मन भयो । तीन प्रवच्छिना दोनी राइ, राजा हरष्य अंगि न माइ ॥8॥ नमसकार कर पूज कराइ, पुणि मुनि कोठे बैठो पाइ ।
परमेसुर स्तुति राजा कर, बारबार भगति उचर ॥१॥ जम्बूचरित्र
इसके लेखक खुशालचन्द काला के ही अनुसार उनके पिता का नाम सुन्दर और माता का नाम अमिधा था । जन्म सांगानेर में हुआ था । प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि इनके गुरु मूलसंघी पं. लक्ष्मीदास थे । गोकुलचन्द्र की प्रेरणा से इन्होंने हरिवंशपुराण का पद्यानुवाद किया था। डॉ. प्रेमसागर ने इनका समय ईसा की अठारहवीं शती का उत्तरार्घ स्वीकारा है यतः इनकी अधिकांश रचनाएँ वि. सं. 1775-1800 के मध्य की हैं 132 काला की अन्य रचनाएँ हैं