Book Title: Jain Vidya 05 06
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 131
________________ जैविचा 125 सोलहवीं शती का पूर्वार्ध निश्चित किया है ।30 भुवनकीति ने ग्रन्थ रचना के साथ-साथ प्रतिष्ठायें भी करायी थीं। वि. सं. 1511 में इसके उपदेश से हूंबड़ जातीय श्रावक करमण एवं उसके परिवार ने चौबीसी प्रतिमा स्थापित की थी। वि. सं. 1513, 1525 एवं 1527 में भी उन्होंने प्रतिष्ठायें कराई थीं।40 ___'जम्बूस्वामीरास' के अतिरिक्त 'जीवन्धररास' और 'अञ्जनाचरित' नामक इनके दो ग्रन्थ प्रौर उपलब्ध होते हैं। जम्बूस्वामीरास में जम्बूस्वामी के पावन चरित्र का रासशैली में अंकन किया गया है। जम्बूस्वामीचरित्र जम्बूस्वामी का चरित्र न केवल प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत और हिन्दी कवियों को ही प्रिय रहा अपितु मराठी भाषा के कवियों को भी उसने प्राकर्षित किया है । सच है महापुरुष किसी देश, जाति या भाषा में नहीं बांधे जा सकते । पण्डित दामा ने मराठी भाषा में 17वीं शती के उत्तरार्ध में जम्बूस्वामीचरित्र की रचना की। मराठी भाषा का यही अकेला जम्बूकथा विषयक काव्य है। दामा पण्डित की एक अन्य कृति 'दानशीतलतप भावना' है जिसमें भगवान महावीर के समवशरण में दान, शील, तप आदि भाव अपनी-अपनी श्रेष्ठतो प्रतिपादित करते हैं। ___ जम्बूस्वामीचरित्र में 16 अध्याय और 1915 प्रोवी हैं ।1 शक संवत् 16101615 के मध्य रत्नसा ने उक्त काव्य का परिवधित संस्करण तैयार किया था जिसमें 14 अध्याय है । जम्बकुमारचरित्र ___ इसके लेखक भट्टारक यशकीति हैं । इसकी भाषा हिन्दी है । इसकी हस्तलिखित प्रति भट्टारकीय ग्रन्थ भण्डार नागौर में है । जम्बूस्वामीचरित्र - इसके लेखक गुणनिधानसूरि हैं । भाषा संस्कृत है । इनका समय वि. सं. 1339 है । इसकी प्रति भी उक्त भण्डार में है । इसके अतिरिक्त अनेक शोध-प्रबन्ध जम्बूस्वामीचरित विषयक काव्यों और उनके लेखकों पर लिखे गये हैं जिनमें दो शोध-प्रबन्ध महाकवि बीर के जम्बूसामिचरिउ पर हैं। पहला शोध-प्रबन्ध डॉ. विमलप्रकाश जैन ने 1968 में 'वीर कृत जम्बूस्वामी के जीवनचरित्र का समालोचनात्मक अध्ययन' शीर्षक से रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय को प्रस्तुत किया था जिस पर उन्हें पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त हुई थी। दूसरा शोध-प्रबन्ध डॉ. कमला गुप्ता ने डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन के निर्देशन में 'जम्बूसामिचरिउ-कथावस्तु का समग्र अनुशीलन' नाम से इन्दौर विश्वविद्यालय को प्रस्तुत किया था। इसी प्रकार जम्बूस्वामीचरित विषयक काव्यों और उनके लेखकों पर भी. अनेक शोध-प्रबन्ध हमारी जानकारी में हैं जिनका परिचय देना इस लघु लेख में संभव नहीं। प्रस्तु

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