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जनविद्या
___ करजोडिवि [(कर)-(जोड) सं कृ] विउसहो' (विउस)6/1 अणुसरमि' (अणुसर) व 1/1 सक अन्भत्यण (प्रब्भत्थण) 2/1 मज्जत्यहो (मज्जत्थ) 6/1 करमि (कर) व 1/1 सक। + स्मरण अर्थ की क्रियाओं के साथ कर्म में षष्ठी होती है ।
अवसदुदु (अवसद्द) 2/1 नियवि (निय) संकृ मा (अ)-मत मणि (मण) 7/1 घरउ (धर) विधि 2/1 सक परिउछिवि (परिउंछ) संकृ सुंदरु (सुंदर) 2/1 वि पउ (पत्र) 2/1 करउ (कर) त्रिधि 3/1 सक |
कन्वु (कव्व) 2/1 जे (अ)-पादपूर्ति कइ (कइ) 6/1 विरयइ (विरय) व 3/1 सक एक्कगुणु [(एक्क) वि-(गुण) 1/1] अण्णेक्क [(अण्ण) (एक्क)] [(अण्ण) वि-(एक्क) 1/1 वि] पउंजिव्वइ' (पउंज) व 3/1 सक निउण (निउण) 1/1 वि ।। + यह शब्द 'पउंजिज्जइ' होना चाहिए ।
___ एक्कु (एक्क) 1/1 वि जे (अ)-पादपूर्ति पाहाण (पाहाण) 1/1 हेमु (हेम) 2/1 जणइ (जण) व 3/1 सक अण्णेक्कु [(अण्ण)+(एक्कु)] [(अण्ण) वि-(एक्क) 1/1 वि] परिक्खा (परिक्खा) 2/1 तासु (त) 6/1 स कुणइ (कुण) व 3/1 सक ।
सो (त) 1/1 सवि विरलु (विरल) 1/1 वि को (क) 1/1 सवि वि (अ)सर्वनाम के साथ अनिश्चयात्मक अर्थ प्रकट करता है। जो (ज) 1/1 सवि उहयमा [(उहय)-(मइ)2/1] एवं विहो (एवं विह) 1/1 वि. वि (अ)=भी पुणु (अ)=फिर हवइ (हव) व 3/1 अक जइ (अ) =यदि ।
सुइसुहयरु [(सुइ)-(सुहयर) 1/1 वि] पढइ (पढ) ब 3/1 सक फुरंतु (फुर) वक 1/1 मणे (मण) 7/1 कव्वत्थु [(कव्व)+(अत्थु)] [(कव्व)-(अत्थ) 2/1] निवेसइ (निवेस) व 3/1 सक नियवयणे [(निय) वि-(वयण . 7/1]
रसभावहिं [(रस)-(भाव) 3/2] रंजियविउसयणु [(रंज-रंजिय)-(विउस)(यण) 1/1] सो (त) 1/1 सवि मुयवि (मुय) संकृ सयंभु (सयंभू) 2/1 अण्णु (अण्ण) 1/1 वि कवणु (कवण) 1/1 वि ।
सो (त) 1/1 सवि चेय (अ)=भी गव्वु (गव्व) 2/1 जइ (अ)=यदि नउ (अ) =नहीं करइ (कर) व 3/1 सक तहो (त) 6/1 कज्जे' (कज्ज) 7/1 घरइ (घर) व 3/1 सक पवणु (पवण) 1/1 तिहयणु (तिहयण) 2/1 । + कभी कभी सप्तमी का प्रयोग तृतीया अर्थ में पाया जाता है। (हे. प्रा. व्या., 3-135) ।
महावीर के चरणों को प्रणाम करके मंदमति वीर कवि विनय सहित (अपनी) बात (इस प्रकार) कहता है।
जो पर गुणों को ग्रहण करने के उद्देश्य से जीता है (और) स्वप्न में भी अल्प दोष को नहीं देखता है, वह सज्जन (है) (और) स्वभाव से स्वच्छ मति (होता है)। (वह) गुण-दोषों की परीक्षा करने में योग्य नहीं होता है ।