________________
जम्बूस्वामीचरित विषयक जैनसाहित्य
-डॉ. कपूरचन्द जैन -डॉ. (श्रीमती) ज्योति जैन
श्रमण संस्कृति की जन परम्परा में 24 तीर्थंकर हुए, जिनमें अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर हैं। महावीर का निर्वाण ई. पू. 527 में हुआ था। महावीर निर्वाण के पश्चात् तीन केवली और पांच श्रुतकेवली हुए। केवलियों में गौतम गणधर, सुधर्मा और जम्बूस्वामी की गणना की गई है। इनका सम्मिलित काल 62 वर्ष है। महावीर निर्वाण के पश्चात् गौतम 12 वर्ष, सुधर्मस्वामी 11 वर्ष और जम्बूस्वामी 39 वर्ष रहे। इसके बाद कोई केवली नहीं हुआ।
श्वेताम्बर परम्परानुसार भगवान् महावीर के प्रथम उत्तराधिकारी सुधर्मा हुए जिनका काल 20 वर्ष है तदनन्तर जम्बूस्वामी केवली हुए, इस प्रकार जम्बूस्वामी के अन्तिम केवली मानने में दोनों मत एकमत हैं ।
जम्बूस्वामी के पश्चात् दिगम्बर परम्परानुसार 5 और श्वेताम्बर परम्परानुसार 6 श्रुतकेवली हुए । इस प्रकार अन्तिम केवली होने के कारण जम्बूस्वामी जैन सम्प्रदाय में उसी प्रकार मान्य और पूज्य हैं जैसे तीर्थकर और अन्य मोक्ष प्राप्त जीव । यही कारण है कि संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी आदि सभी भाषाओं के कवियों ने उनके चरित्र को अपना वर्ण्य और विवेच्य विषय बनाया । जम्बूस्वामी विषयक जैन साहित्य के विवेचन से ज्ञात होता है कि प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश की अपेक्षा हिन्दी में उन्हें प्राधार बनाकर अधिक ग्रन्थ लिखे गये।
जम्बूस्वामी विषयक साहित्य के विवेचन से पूर्व जम्बूस्वामी-चरित्र को संक्षेप में जान लेना असमीचीन नहीं होगा।