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जम्बूसामिचरिउ की कथानकसृष्टि
और हिन्दी काव्य-परम्परा
-डॉ. (श्रीमती) पुष्पलता जैन
जंबूसामिचरिउ महाकवि वीर की कदाचित् एकमात्र ऐसी कृति है जो उनके व्यक्तित्व पौर कृतित्व को काफी अंश तक उजागर कर देती है। 10-11वीं शती के इस महाकवि ने • तत्कालीन अभिज्ञात ग्रंथों का पारायण कर एक वर्ष की ही कालावधि में इतने बड़े महाकाव्य की सर्जना कर दी यह उनके श्रम और वैदुष्य का ही महाफल माना जा सकता है ।
जम्बूस्वामी जैन परम्परा का सर्वमान्य व्यक्तित्व रहा है। जैसा कि हम जानते हैं इन्द्रभूति, सुधर्मा एवं जम्बूस्वामी तक की प्राचार्य परम्परा में दिगम्बर-श्वेताम्बर परम्परामों के बीच साधारणतः कोई मतभेद नहीं है। यह समय 62/64 वर्षों का रहा है। जम्बूस्वामी सुधर्मा स्वामी के पट्टधर शिष्य थे। उन्होंने उनसे ही आगम ग्रंथों का अध्ययन किया जो कालांतर में श्रुति माध्यम से हस्तांतरित होता रहा । सुधर्मा और जम्बूस्वामी के प्रश्नोत्तरों में ही समूची जैन आगम परम्परा सुरक्षित दिखाई देती है । भेद प्रारम्भ होता है केवली जम्बूस्वामी के बाद । दिगम्बर परम्परा उनके बाद क्रमशः विष्णु या नन्दि (14 वर्ष), नन्दिमित्र (16 वर्ष), अपराजित (22 वर्ष), गोवर्धन (19 वर्ष) और भद्रबाहु (29 वर्ष) इन पांच श्रुतकेवलियों को मानती है जबकि श्वेताम्बर परम्परा इनके स्थान पर प्रभव (11 वर्ष),