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जैन विद्या
स्वामी सागर में प्रदीप्त वड़वाग्नि के तुल्य मान सकते हैं। वड़वाग्नि की भांति ही जम्बूसामिचरिउ की मूल प्रात्मा भी राग पर विराग की विजय मशाल बनकर अपने अनुपम प्रभाव से अनेकविध वासनाओं के सागर जनजीवन में व्याप्त विविध
प्रवृत्तियों को निरर्थक बताने के साथ-साथ यथार्थ जीवन की सच्चाई को असीम बनाये रखती है।
पुरा भारतीय विचारधारा के अधीन समाज को पुरुषायत्त माना जाता रहा है। अपने पौरुष एवं दायित्व निर्वाह के बल पर पुरुष ने समाज में प्रधान स्थान पाया हो या वर्चस्व बनाया हो इससे मुझे कोई आपत्ति नहीं है किन्तु पुरुष के सामने नारी का महत्त्व कम करना कथमपि न्यायसंगत नहीं होगा। समाज में स्त्री और पुरुष दोनों का ही महत्त्व अपेक्षाकृत अहेय है । कहीं स्त्री प्रधान है तो कहीं पुरुष । स्त्रियों की प्रशिक्षा-परायत्तता व पुरुषों के पक्षपात ने स्त्रियों की प्रधानता को इतना दबाया या उसका इतना दमन किया कि समाज पुरुष-प्रधान कहलाने लगा। अपनी दमनात्मक विजय से पुरुष ने और अशिक्षा के कारण स्त्रियों ने समाज को पुरुष-प्रधान मान लिया हो पर सत्य के सहचार से बुद्धिजीवी इसे कतई स्वीकार नहीं करेंगे और समाज में स्त्री व पुरुष दोनों की ही अपेक्षाकृत प्रधानता अक्षुण्ण रहेगी।
जम्बूसामिचरिउ में कवि वीर आदि से अंत तक विविध प्रसंगों में नारी पात्रों का सफल निर्वाह करते हैं। शृंगार रस के निर्वाह में ही नहीं वीररसोद्भूति में भी कवि ने नारी चरित्र को अहमियत प्रदान की है। उन्होंने प्राभ्युदयिक पथ पर प्रयाण हेतु भी नारी-पात्रों की उदात्तता बनाये रखी है। वीर कवि के अनेक नारी-पात्र विविध प्रसंगों में मर्यादानुरूप रागरंजन की उत्सुकता रखकर भी वैराग्य का महत्त्व सर्वोपरि समझते हैं। जम्बूकुमार के प्रवजित होने पर मातुश्री जिनमती का दीक्षा ग्रहण कर लेना तथा पद्मश्री आदि वधुओं का भी प्रवजित होकर प्रायिका के व्रत पालने लगना उपर्युक्त कथन की पुष्टि करता है।
जम्बूसामिचरिउ में कुल 27 नारीपात्र हैं जिनमें से 26 नाम मूलकथानक से संबंधित हैं और एक अन्तर्कथानक से । अन्तर्कथानकों में चार-पांच नारियां बिना किसी नाम के भी अभिनीत हुई हैं। मूलकथा में तो बहुत बड़ा परिवेश अनभिधानवाली नारियों की सूचना देता है। अभिधानोपेत 11 नारियों का दिग्दर्शन अन्यों द्वारा होता है, शेष नारी-पात्र ही किसी न किसी रूप में अभिमंचित होते रहते हैं। सभी नारी-पात्रों का निर्वाह शालीनतामिश्रित मर्यादानुकूल प्रक्रिया के तहत हुआ है । सुस्पष्ट प्रतिपत्ति के लिए ग्रंथोल्लेखानुक्रम से उनका विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है -
सोमशर्मा-वर्द्धमान ग्राम निवासी, विशुद्ध कुल में उत्पन्न व शुद्ध शील से सम्पन्न शास्त्रों के वेत्ता आर्यवसु नामक सूत्रकंठ ब्राह्मण की कृतपुण्या गृहिणी ही सोमशर्मा है। यह सुन्दर एवं रमणीय शरीरवाली है। प्रगाढ़ पतिव्रता होकर यह सदा ही पति के स्नेह में अनुरक्त रहती है। व्याधिपीड़ित पति ने जब विष्णु का नाम लेकर चिता में प्रवेश कर लिया तो यह भी उनके मरणवियोग को सहन न कर पाने से उसी चिता में प्राहूत होकर मर जाती है । काव्य के