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अन्यत्वानुप्रेक्षा बज्झइ अण्ण कम्मपरिणामे,
जणे को किज्जइ अण्णे नामें। गोत्तु निबंधइ अण्णहि खोरिणहि,
उप्पज्जइ अण्णण्णहि जोरिणहिं। अण्णण जि पियरेण जणिज्जइ,
अण्णइ मायइ उयरे धरिज्जइ । अण्णु को वि एक्कोयरु भायरु,
अण्ण मित्तु घणनेहकयायर । अण्णु कलत्तु मिलइ परिणंतह,
अण्णु जि पुत्तु होइ कामंतहँ । अण्णु होइ धरणलोहें किंकर,
__अण्णु जि पिसुणु होइ असुहकरु । अण्णु अण्णइ-प्रणंतु सचेयण,
सावहि अण्णु पड्ढ्यिवेयणु । अर्थ-परिणामों के अनुसार यह जीव अपने से भिन्न पुद्गल-कर्मप्रकृतियों से बंधता है एवं लोगों में अन्य ही नाम से पुकारा जाता है । भिन्न-भिन्न पृथ्वियों में भिन्न-भिन्न गोत्र बांधता है और भिन्न-भिन्न योनियों में उत्पन्न होता है। उत्पन्न करनेवाला पिता अन्य होता है और अन्य माता अपने उदर में धारण करती है। सहोदर भाई भी कोई अन्य होता है, अत्यन्त स्नेह करनेवाला मित्र भी अन्य होता है। विवाह करते समय पत्नी भी अन्य मिलती है और उसके साथ भोग करने के पश्चात् पुत्र भी अन्य ही जन्म लेता है । धन के लोभ के कारण नौकर भी अन्य हो जाता है और अशुभंकर शत्रु भी अन्य । जीव का अनादि सचेतन स्वरूप भिन्न होता है और कर्म-उदीरणा से युक्त सादि-सान्त स्वरूप भिन्न ।
जं. सा.च. 11.5