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जंबूसामिचरिउ के मंगल प्रसंग एक व्याकरणिक विश्लेषण
- डॉ. कमलचन्द सोगाणी
'जंबूसामिचरिउ' महाकवि वीर द्वारा रचित एक उच्चकोटि का महाकाव्य है । यह अपभ्रंश भाषा में निबद्ध है । इसी ग्रंथ में से हमने कुछ मंगल प्रसंगों का चुनाव करके उनकी भाषा का व्याकरणक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इससे अपभ्रंश भाषा के व्याकरण को प्रयोगात्मक रूप में समझने में सहायता मिलेगी । व्याकरण को प्रस्तुत करने में जिन संकेतो का प्रयोग किया गया है वे नीचे दे दिये गये हैं । यहां उन मंगल प्रसंगों का अनुवाद भी किया गया है । यहाँ यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि भाषा का व्याकरण और अनुवाद एक दूसरे से घनिष्ठ रूप में संबंधित होते हैं ।
सो जयउ महावीरो झारणाणलहुणियरइसुहो जस्स ।
नाणम्मि कुरइ भुरणं एक्कं नक्खत्तमिव गय ॥ 1.5
-सो (त) 1 / 1 सवि जयउ ( जय ) विधि 3 / 1 अक महावीरो ( महावीर ) 1 / 1 कारण हरिणय रइसुहो [ ( झाण) + (प्रणल) + (हुरिणय) + (रइ) + (सुहो ) ] [ ( भाण) - (प्रणल) - - (हुण + हणिय) भूकृ - - ( रइ ) - ( सुह ) 1 / 1] जस्स ( ज ) 6 / 1 स नाणम्मि (नाग) 7/1 कुरइ (फुर) व 3 / 1 अक भुश्रणं (भुमण) 1 / 1 एक्कं ( एक्कं ) 1 / 1 [(नक्खत्तं) + (इव)] नक्खत्तं (नक्खत्त) 1 / 1 इव (प्र) = जैसे
वि नक्खत्तमिव
गयरणे ( गयण) 7 / 1 ।