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जनविद्या
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......"और तभी छद्ममामा बनकर पाता है विद्युच्चर । वह भी कुमार को सांसारिक विषयों के प्रति आकर्षित करना चाहता है। इसके निदर्शनार्थ वह भी विषयभोग से सराबोर कथा सुनाता है और कुमार भोग की निरर्थकता प्रतिपादित करनेवाली। फिर परस्पर चारचार कथाएं कही जाती हैं। इस प्रकार उस रात अपने-अपने मत की पुष्टि के लिए सोलह कथाओं का आदान-प्रदान होता है और अरुणोदय का समय हो जाता है। परिजन, वधुएं, विद्युच्चर सभी अपनी शर्त में हार जाते हैं और अविचल विरागी, निःश्रेयस के लिए तत्पर जम्बूकुमार गृह त्याग वन की राह लेते हैं। उनके साथ पिता प्ररहदास, माता जिनमती, विद्युच्चर और चारों नववधुएं भी विरागी हो त्यागमार्ग अपनाते हैं ।
यह सम्पूर्ण वर्णन अत्यन्त रोचक, रोमांचक, प्रभावी व अद्भुत है। ऐसी घटना अभूतपूर्व है, न भूतो न भविष्यति ।
यह प्रसंग कवि वीर की रचना का प्राण है । इस अनूठे प्रसंग से ही इस चरितकाव्य का महत्त्व, मोहकता एवं लोकप्रियता का प्रसार हुआ है और कवि वीर विश्रुत हुए हैं।
____ सबसे अन्त में विद्युच्चर द्वारा अनुप्रेक्षानों का चिन्तन भी वैराग्य विधायक है। द्वादश-अनुप्रेक्षाएं प्राणी के समक्ष संसार के स्वरूप का दिग्दर्शन कराती हुई हेयोपादेय का निर्णय करने की प्रेरणा देती हैं (11.1-14)। इनके वर्णन में अनेक स्थल अत्यन्त प्रभावी एवं सटीक बन पड़े हैं। विस्तार-भय से उनको उद्धृत नहीं किया जा रहा ।
इस प्रकार कवि वीर के काव्य में राग-शृंगार का भरपूर वर्णन होते हुए भी लक्ष्य 'वैराग्य-भाव' ही रहा है। जम्बू का विवाहोत्सव दूसरे दिन प्रातः ही वैराग्योत्सव में परिणत हो जाता है और हम देखते हैं कि विद्युच्चर जैसा व्यसनी, कुमार्गरत मानव भी जंबूकुमार से प्रेरित होकर वैराग्य-रस में रंगकर आत्म-शोधक/साधक बन जाता है, मोक्षपथ का पथिक बन जाता है । यह चरितकाव्य अपने लक्ष्य में सफल है, अपनी निकष पर खरा हैयह घटना इसकी द्योतक है, प्रमाण है।