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जैनविद्या
कवियों ने प्रकृति-चित्रण करते समय एक ओर जहां प्रालंकारिक शैली का उपयोग किया है वहीं भोजन, उद्यान, वनस्पति-जगत्, पशु-पक्षी जगत्, प्रसाधन सामग्री आदि का भी सुंदर वर्णन किया है । स्वयंभू ने पउमचरिउ में उद्यान का वर्णन करते समय पेड़-पौधों की एक लम्बी सूची दे दी ( 3.1 ) । जंबूसामिचरिउ में वीर कवि ने भी मंदार, कुंद, करवंद, (करौंदा) मुचकन्द, चंदन, ताल, लवली, कदली, द्राक्षा, पद्माक्ष, रुद्राक्ष, बेल, विचिकिल्ल, चिरिहिल्ल, सल्लकी, प्राम, जवीर, जंबू, कदम्ब, कनैर, करमर, करीर, राजन, नाग, नारंगी, न्यग्रोध, शतपत्र (4.16), तमाल, ताल. नागलता, मल्लि, उंबर, दाडिम, कंद, मंदभार, सिंधार, देवदारु, चिरोंजी (4.21), अहिमार, खदिर, धव, धम्मण, बेरी, बांस, झठी, तिरिणिगच्छ, अजंग, रोहिणी, रावण, बेल, चिरिहिल्ल, अकोल्ल, धात्तभी, मल्लि, भल्लातकी, छोटी टिंबर, निधन, फणस, हिगुणी, कटहल, किरिमाल, शिफाकन्द, कनेर, कुटज, णिकार, ककुभ, वट ढोह, करील, करवंदी महुअा, सिंदी, निब, जंबूकिनी, नीबू, उंबर, (58) आदि वृक्षों के नाम यथास्थान उल्लिखित किये हैं । इन्हीं के साथ पशु-पक्षियों के नाम भी जुड़े हैं । इसी तरह वनस्पतियों की एक लम्बी सूची मिलती है । अपभ्रंश काव्यों की इसी रूढि का पालन पृथ्वीराज रासो में भी मिलती है [समयो 59-छन्द 6-10] । इसी प्रकार की परिगणन शैली पद्मावत में भी प्रयुक्त हुई है जहां प्रारम्भ में ही सिंहल द्वीप की अमराई का वर्णन करते समय विविध फलों, पक्षियों और सरोवरों का वर्णन मिलता है (दोहा-187) ।
इसी प्रकार भोजन सामग्री का भी संकलन उपलब्ध होता है जो कथानक रूढ़ियों का अन्यतम अंग है । धनपाल ने जैसा भविसयत्तकहा (12.5) में परोसने का वर्णन किया है, जंबूसामिवरिउ में वीरकवि ने भी उसी तरह वैवाहिक भोज के अवसर पर परोसे जानेवाले विविध व्यंजनों के नाम दिये हैं (8.13)। पद्मावत (चित्तोर खंड) और पृथ्वीराज रासो [समय 63 छन्द 72-74] में भी इस परम्परा का निर्वाह किया गया है।
___ अपभ्रंश चरितकाव्य में विवाह, पुत्रोत्सव, समवशरण आदि के समय वाद्य-संगीत का भी वर्णन मिलता है । पुष्पदंत ने इस संदर्भ में नाटक, संगीत आदि का अच्छा शास्त्रीय विवेचन किया है (6.5-8) । जंबूसामिचरिउ में वीर ने भी सेना प्रयाण के समय इन वाद्यों की परिगणना की है (5.7) । पृथ्वीराज रासो में भी जयचंद की सभा में नाटकादि के प्रायोजन द्वारा 61वें समय में इस परम्परा का पोषण हुअा है ।
इसी प्रकार विवाह, भविष्य-सूचक स्वप्न, तंत्र-मंत्र आदि से सम्बद्ध घटनाएं भी जंबूसामिचरिउ में मिलती हैं जिनका प्रभाव पृथ्वीराज रासो पर भी दिखाई देता है। चन्दवरदायी को प्रायः सरस्वती द्वारा स्वप्न में भूत-भविष्य की बातें ज्ञात हो जाती थीं। वह तंत्र-मंत्र का ज्ञाता भी है । अमरसिंह सेवरा तथा भट्ट दुर्गाकेदार के साथ उसका मंत्र-युद्ध हुप्रा है । पाल्हाखंड में भी माडौ युद्ध, इन्दलहरण और ऊदलहरण के समय तंत्र-मंत्र शक्ति का प्रयोग किया गया है । भविष्यसूचक स्वप्न (नेपाली राजा की देवी का स्वप्न) शकुन-विचार आदि अन्य कथानकरूढ़ियों का भी प्रयोग आल्हा खंड में हुआ है । पद्मावत में भी शकुन (विचार 135), वृक्ष, फल-फूल (28-29, 33-35, 187-188), स्वप्न-विचार (197-8), खाद्य पदार्थ वर्णन