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जैनविद्या
प्रकार के कथाग्रंथ ही हैं । सूफी कवियों का कथाशिल्प, मंगलाचरण, स्तुति, निन्दा, कविनिवेदन आदि कथानक रूढ़ियों से ओतप्रोत हैं ।
सारे भारतीय कथाकाव्यों का मूल उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति रहा है। मोक्षप्राप्ति तक पहुंचाने के लिए सांसारिकता का वर्णन आवश्यक हो जाता है। सांसारिकता से मुक्ति तक के मार्ग को तय करने के लिए कथाकारों ने कथाशिल्प की खोज की। निजन्धरी विश्वासों पर आधारित रूढ़ियां आईं, चमत्कारी कथाओं का सृजन हुआ, पशु पक्षियों का उपयोग प्रेमकथाओं में किया जाने लगा, भविष्यवाणी और अभिशाप-संयोजन की योजना बनी, बारहमासों का प्रयोग विरहवेदना के लिए हुना, स्वप्नदर्शन, नागदेव-देवियों की प्राश्चर्यभरी गतिविधियां, तंत्रमंत्र-औषधियों का प्रयोग, समुद्रयात्रा, वैराग्य के कारण, धर्मोपदेश और मुक्ति का धंग्राधार वर्णन किया गया और हीनाधिक रूप में उन्हें काव्य के क्रम में कस दिया गया। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के महाकाव्यों अथवा चरितकाव्यों से लेकर ये समस्त प्रवन्धरूढ़ियां हिन्दी के मध्यकालीन महाकाव्यों तक बेरोकटोक चली आयी हैं। बानगी के रूप में कतिपय यहां द्रष्टव्य हैं
अपभ्रंश के महाकाव्य संधियों में विभक्त हैं । ये संधियां कड़वकबद्ध होती हैं । कडवक पदबद्ध होते हैं और उनके साथ घत्ता जुड़े हुए रहते हैं । रासो का विभाजन समय, प्रस्ताव, पर्व या खण्ड में होता है जो संस्कृत महाकाव्यों का अनुकरण है। मंगलाचरण के रूप में अपभ्रंश काव्यों में तीर्थंकरों का स्तवन रहता है । पृथ्वीराज रासो में भी प्रथम समय में इन्द्र, गणेश आदि देवों की स्तुति की गई है। पद्मावत और रामचरितमानस में भी यही प्रवृत्ति देखी जाती है।
वस्तुवर्णन में अपभ्रंश चरितकाव्यों में देश, नगर, ग्राम, शैल, उपवन, ऋतु, क्रीड़ा, विवाह, युद्ध आदि का वर्णन आता है। जंबूसामिचरिउ में इसे क्रमशः 1 6-8, 3.1--2, 2.4, 5.8-10, 1.7, 1.9-10, 4.13-17, 4.17-19, 8.9, 5.7-11 में देखा जा सकता है । पृथ्वीराज रासो, पद्मावत, रामचरितमानस प्रादि काव्यों में भी यह प्रवृत्ति आसानी से खोजी जा सकती है । पद्मावत का सिंहल नगर वर्णन, मृगावती का सरोवर वर्णन, रासो का राजोद्यान वर्णन, पृथ्वीचन्द्र चरित का चौरासी हार वर्णन, कीर्तिलता का अश्व वर्णन, यूद्ध वर्णन आदि तत्त्व अपभ्रंश काव्यों से ही प्रभावित है । स्वयंभू ने रामकथा की तुलना नदी से की पर महाकवि वीर ने नदी और सरोवर की बात कहकर संक्षिप्तीकरण की दृष्टि से तुलना के लिए करवे के जल को अधिक उपयुक्त समझा
सरि-सर निवाण-ठिउ बहु वि जलु सरसु न तिह मण्णिज्जइ ।
थोवउ करयत्थु विमलु जणरण अहिलासें जिह पिज्जइ ॥ 1.5.10-11 ।।
तुलसी ने भी रामकथा की तुलना सरोवर से की पर रासोकार ने रासोकथानक की तुलना राजसी सरोवर से करके उसे और अधिक महत्त्व दे दिया
काव्य समुद्र कवि चन्द्र कृत मुगति समप्पन ग्यान । राजनीति वोहिय सुफल पार उतारन यान। रासो 1.80