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एकत्वानुप्रेक्षा
जीवहो नत्थि को वि साहिज्जउ,
कम्मफलई जो भंजइ विज्जउ । एक्कु जि पावइ निउइ महल्लउ,
निवss घोरनरए एक्कल्लउ ।
एक्कु जि खरघम्मेण विलिज्जइ,
एक्कु वि वइतरणिहि वोलिज्जइ ।
एक्कु जि ताडिज्जइ श्रसवर्त्ताह,
एक्कु जि फाडिज्जइ करवर्त्ताह ।
एक्कु जि जोएं गलियवियप्पर,
जायइ जीउ सुद्धपरमप्पउ ।
घत्ता – एक्कु जि भुजइ कम्मफलु, जीवहो बीयउ कवणु कलिज्जइ । तुम कह संभवइ, रायदोसु कसु उपरि किज्जइ ॥
अर्थ -- जीव का ऐसा कोई ज्ञानी या वैद्य सहायक नहीं है जो उसके कर्मफलों को काट
दे । जीव अकेला ही मोक्ष को प्राप्त करता है और अकेला ही घोर नरक में गिरता है, वहाँ अकेला ही तीक्ष्ण ताप से तपाया जाता है, अकेला ही वैतरणी में डूबता है। जीव नरक में अकेला असिपत्रों से फाड़ा जाता है, अकेला ही करौंत से चीरा जाता है । वह अकेला ही योग [ ध्यान व तप ] से समस्त विकल्पों खत्म कर शुद्ध परमात्मा हो जाता है। कर्मफल को भोगता है, दूसरा (अपना) किसे गिना जाय ? ( किसीका ) कहां सम्भव है ? ( अतः ) राग व द्वेष किसके ऊपर किया जाय ?
शत्रु
जीव अकेला ही
या मित्र होना
जं. सा. च. 11.4