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संसारानुप्रेक्षा जम्मंतरई लेंतु मेल्लंतउ,
कवणु न कवणु गोत्तु संपत्तउ । वप्पु जि पुत्तु पुत्तु जायउ पिउ,
'मित्तु जि सत्तु सत्तु बंधउ थिउ । माय जि महिल महेली मायरि,
बहिरिण वि धीय धीय वि सहोयरि । सामिउ दासु होवि उप्पज्जइ,
दासु वि सामिसालु संपज्जइ । केत्तिउ कहमि मुणहु अणुमाणे,
____ जम्मइ ' अप्पारणउ अप्पाणे । नारउ तिरिउ तिरिउ पुणु नारउ,
देउ वि पुरिसु नरु वि वंदारउ । अर्थ-जन्मान्तर ग्रहण करते और छोड़ते हुए यह जीव कौन सा गोत्र प्राप्त नहीं करता ? पिता पुत्र और पुत्र पिता बन जाता है। मित्र शत्रु बन जाते हैं और शत्रु बंधु । माँ पत्नी बन जाती है और पत्नी माँ । बहिन माँ बन जाती है और माँ सगी बहिन । स्वामी दास हो जाता है और दास स्वामियों का भी स्वामी। (कवि कहता है) मैं कितना कहूं, अनुमान से ही जान लो, स्वयं स्वयं में ही उत्पन्न हो जाता है, नारकी तिथंच और तिर्यंच नारकी बन जाता है, देव भी मनुष्य और मनुष्य भी देव हो जाता है।
-जं. सा. च. 11.3.3.8