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जैन विद्या
तद्जनित 'व्यग्रता' कभी पुत्रवधुओं की सफलता की 'आशा' एवं उससे उत्पन्न 'हर्ष' आदि संचारी भावों से सहवर्तित मां की 'वत्सलता' का यह अनूठा चित्र अपनी सानी नहीं रखता ।
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'जंबूसा मिचरिउ' में 'करुण' और अद्भुत रस के प्रवाह हैं । भवदत्त और भवदेव के पिता की मृत्यु पर उनकी मां का सती होना एक कारुणिक प्रसंग है ( 2.5.16 - 17 ) । 'विस्मय' भाव की स्थिति दो अवसरों पर निष्पन्न होती है - एक तो विद्युन्माली देव द्वारा भगवान् के समवशरण में आने पर (2.3.5 ), दूसरी गगनगति विद्याधर के श्रेणिक की राजसभा में आकाशमार्ग से प्रविष्ट होने पर । रत्नशेखर और मृगांक की सेनाओं में प्रहार को न सहसकने वाले सैनिकों का युद्धभूमि से 'भागना' 'भय' से सम्पृक्त है ।
निष्कर्षत: 'जम्बू सामिचरिउ' की काव्य-भूमि में वीर, श्रृंगार और शान्त रस की त्रिवेणी ही अबाधगति से प्रवाहित रही है । अन्य रसों की सामान्य निष्पन्नता कवि की सहज भावानुभूति का प्रतीक है। 'जम्बूसामिचरिउ' की रसवत्ता में अधिक विश्वास होने के कारण ही वीर कवि ने उसके काव्यास्वाद को अधिक आनन्दप्रद स्वयं ही घोषित कर दिया था.
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बालक्कीलासु वि वीर, वयणपसरतकव्वपीडसे । कण्णयुडएहि पिज्जइ, जणेहि रसमउलियच्छेहि ॥