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जैन विद्या
विद्युच्चर ने अडिग हो धर्मध्यान और अनुप्रेक्षाग्रों में अपने को निमग्न रखा और समाधिपूर्वक देह त्याग वे सर्वार्थसिद्धि को प्राप्त हुए ।
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प्रश्न-
उत्तर - यह बात यथार्थतः सत्य है । महाकवि वीर के पूर्व जम्बूस्वामी चरित्र की कथा - वस्तु संघदासगण ने वसुदेव- हिंडी में कथा की उत्पत्ति नामक प्रकरण में, गुणभद्र ने उत्तर पुराण के छिहतर पर्व में तथा कवि गुणपाल ने गद्य-पद्य मिश्रित शैली में रचित प्राकृत जंबूचरियं में ग्रथित की थी । पुष्पदंत ने अपभ्रंश महापुराण के उत्तर-खण्ड में सौवीं संधि में "जंबूस्वामीदिक्ख लप्णणं" में पूर्णरूप से गुणभद्र का ही अनुकरण किया, पर वीर कवि ने लीक से हटकर कथा-गठन में अपनी मौलिकता का यथार्थ परिचय दिया है । कवि ने वस्तु व्यापार-वर्णन जैसे ग्रीष्म वर्णन ( 18.13.1–7), वर्षा वर्णन (9.9.6), नदी- सरिता (5.10.4 – 9 ), जलक्रीडा (4.19 ) हस्तिउपद्रव (4.17.18) आदि अनेक वर्णनों से महाकाव्य के अनुरूप वर्णन किया है । फिर यथा-स्थान छोटी-बड़ी अनेक कथाओं का समावेश करके और उनको मूल चरित्र में पिरोकर प्रख्यान को महाकाव्य की ओर ले जाने की दृष्टि रखी है । महाकाव्य प्रतिद्वन्द्वी नायक भी होता है, तो कवि ने विद्याधर रत्नशेखर का आख्यान कल्पित किया । यह आख्यान वसुदेव हिंडी, उत्तरपुराण या प्राकृत जंबूचरियं में कहीं नहीं है । युद्ध में राजा श्रेणिक को न भेजकर जंबूकुमार (नायक) को भेजा है जो अपने शौर्य से प्रतिनायक को परास्त करता है । इसी तरह और भी अंश है जो कल्पित हैं पर महाकाव्य का कलेवर बनाने में आवश्यक हो गए हैं। उन्हें कवि ने बड़ी चतुराई से समेटा है और यथास्थान मूल कथा में गूंथा है । इस प्रकार सच है कि पहले का पौराणिक ग्राख्यान कविवर के हाथों महाकाव्य बन गया है । वर्णन तो कल्पना के आधार पर ही होता है । काव्य बिना कल्पना के बन ही नहीं सकता 1
प्रश्न
यही जम्बूसामिचरिउ का कथा सार है ।
if ! विद्वान् कहते हैं कि दूसरे लेखकों ने जम्बूस्वामी चरित्र लिखा जो पौरा fre आख्यान था लेकिन वीरकवि ने इस प्राख्यान को महाकाव्य में परिणत किया । क्या यह यथार्थ है ?
उत्तर
पंडितजी ! जंबूसामिचरिउ के महाकाव्यात्मक मूल्याँकन में विद्वानों की क्य राय है ?
जहां तक मैने जाना है विद्वानों की राय है कि 'जंबूसामिचरिउ' एक महाकाव्य और उसमें महाकाव्योचित सभी गुण हैं । संक्षेप में आपको बताता हूं-
1. व्याकरण सम्मत भाषा
2. ललित पद सन्निवेश
3. श्रुति मधुर वर्ण
4. प्रथं गांभीर्य