________________
जम्बूसामिचरिउ में रसयोजना
- डॉ. गंगाराम गर्ग
'जम्बूसामिचरिउ' अन्तिम केवली जम्बूस्वामी और उसके पूर्वभवों में विद्यमान प्रवृत्ति और निवृत्ति के संघर्ष और उसमें निवृत्ति की विजय की अनुपम कहानी है । वीर कवि ने जम्बूस्वामी जैसे अतुलनीय 'युद्धवीर' और 'धर्मवीर' के उदात्त चरित्र से काव्य को fusa fear है और सहज जीवानुभूतियों से परिचित होने के कारण उसे अधिक संवेदनीय भी बनाया है।
काव्य की रसवत्ता कवि का लक्ष्य रहा । रसराज शृंगार के दोनों पक्ष संयोग और वियोग में संयोग श्रृंगार का अधिक चित्रण 'जम्बूसामिचरिउ' में हुआ है । संयोग वर्णन के भी दो रूप हैं नायिका नायक का रूपवर्णन तथा मिलन- चित्रण | 'जम्बूसा मिचरिउ' की नायिकाओं के अंग सौष्ठव में अलकों का घुंघरालापन, कटि की क्षीणता, भ्रू का बांकपन, श्रधरों का वर्तुलाकार, स्तनों की स्थूलता, कपोलों की चन्द्रखंड जैसी स्वच्छता और ललाट की संकीर्णता चित्रित हुई है । स्थूल सौन्दर्य की अपेक्षा नायिका का सूक्ष्म सौन्दर्य जम्बूस्वामी के मानस पर गहराई से अंकित हुआ है, हंस जैसी मंद-मंद चाल, हथेलियों का विलास, भौंह का बांकपन, चरणों की कोमलता से प्रभावित जम्बूस्वामी हर्षोन्मादवश नायिका की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते