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जैन विद्या
चरित्र से सम्बन्धित प्राप्य हैं ।1 मैंने भी कुछ देखे हैं पर मुझे उन सब में वीर-कवि का 'जंबूसामिचरिउ' सबसे उत्तम लगा है । अनेक विद्वानों की भी यही राय है। वह अपभ्रंश भाषा का ग्रंथ है । मैंने ध्यान से उसे पढ़ा है । बड़ा सुन्दर काव्य है।
प्रश्न- पण्डितजी ! मैंने भी इस काव्य का नाम सुना है । इसके रचयिता श्री वीर कवि के
सम्बन्ध में पाप कुछ प्रकाश डालिये।
उनका काल, निवास-स्थान, जाति, धर्म आदि जानने की जिज्ञासा है। उत्तर
तो भाई ! सुन लीजिये । आज से लगभग एक हजार वर्ष पहले की बात है। भारत के मध्य भाग मालवा प्रान्त में गुलखेड़ नामका एक नगर था। वहां एक सद्गृहस्थ रहते थे, उनका नाम था श्री देवदत्त । उनके पास काफी कृषि-भूमि थी। वे स्वयं धर्मात्मा तथा विद्याव्यसनी थे अतः उनका अधिक समय धर्मशास्त्र-पठन व काव्य-रचना में बीतता था । वे उस समय के गुलखेड़ और आस-पास के क्षेत्रों में शास्त्रज्ञ व कवि गिने जाते थे। इन कवि देवदत्त के पुत्र कवि वीर हुए। उनकी माता का नाम संतुवा था। कवि के तीन भाई थे । 'सहिल्ल', 'लक्ष्णांक' तथा 'जसई'। इन तीनों भाइयों का ध्यान कृषि और व्यापार में लगा । वास्तव में वे लक्ष्मी के पुजारी बने और अपने. अग्रज वीर को सरस्वती-अर्चना में लगे रहने दिया।
वीर कवि बड़े रसिक और प्राकर्षक व्यक्तित्ववाले थे इसलिए उनने समय-समय पर चार विवाह किये। चारों धर्म-पत्नियाँ हिल-मिलकर रहती थीं। उनके नाम हैं—'जिनमती', 'पद्मावती', 'लीलावती' और सबसे छोटी थी 'जयादेवी'। इस तरह इनके भरे-पूरे घर में गार्हस्थ्य स्नेह का रंग साकार हो बरसता था जो कविता का उद्रेक हो सकता था । घर में ही कवि ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं का गहरा अध्ययन किया । ये लाट-वर्गर वंश के थे। वैश्यों का यह वंश गुजरात और सागवाड़े के पास अधिक है । इस वंश में अनेक प्राचार्य, मुनि व लेखक हो गये हैं ये दिगम्बर जैनधर्म के अनुयायी रहे हैं ।
प्रश्न- पण्डितजी ! क्या उक्त विद्वान् देवदत्तजी ने भी कोई ग्रंथ लिखे हैं ? उत्तर- हां, विद्वान् कवि देवदत्त के लिखे चार ग्रंथों का उल्लेख मिलता है । पहिला ग्रं
'वरांग-चरित्र' है जो पद्धडिया-छंद में लिखा गया है । दूसरा ग्रंथ है 'शांतिनाथ रास जो चच्चरिया शैली में लिखा गया है । तीसरा ग्रंथ है 'सुद्धवीरकथा' यह सरस काव्य शैली में लिखा गया है और चौथा है 'अंबादेवी रास' जो नृत्याभिनय के योग्य है प्रो जो कवि के तथा उनके पुत्र वीर कवि के काल में भी मंच पर अभिनीत किय
गया था।
प्रश्न- इससे स्पष्ट विदित होता है कि श्री वीर कवि को उनके घर में ही उनके पिता
कवि-गुण प्राप्त हो गये थे । ठीक है न ?