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जंबूसामिचरिउ-छवि भली संवारी वीर कवि
-श्री नेमीचंद पटोरिया
शायद पांच-छः वर्ष बीते होंगे, मैं सकुटुम्ब श्री मथुरा चौरासी आदि की वंदना को गया था। श्री मथुरा चौरासी के जिनमन्दिरों में तीर्थंकर अजितनाथ की भव्य प्रतिमा के दर्शन · कर हृदय को बड़ी शांति मिली । पास ही किन्हीं के पूज्य चरण-चिह्नों को देखक र मेरे हृदय की जिज्ञासा चुप न रह सकी । पास में खड़े शायद वहीं के पण्डितजी से पूज्य चरण-चिह्नों के सम्बन्ध में मैं पूछ ही बैठा । पाया कि वे न केवल पण्डित ही हैं, अपितु गम्भीर विद्वान् भी हैं । उन्होंने बताया कि वे चरण-चिह्न अंतिम केवली श्री १००८ भगवान् जंबूस्वामी के हैं।
जैसे चंद्र को देख समुद्र में ज्वार उठता है, उसी प्रकार मेरी जिज्ञासा उन चरण-चिह्नों के बारे में जानने को उमड़ पड़ी। मैंने उन विद्वान् पण्डितजी से अपने हृदय का हाल स्पष्ट कहा, तो उन्होंने पास ही एक चबूतरे पर बैठने का इशारा किया । वहीं पूज्य केवली भगवान् श्री जंबूस्वामी के जीवन के सम्बन्ध में जो वार्ता हुई उसे मैं सम-जिज्ञासु बंधुओं के हितार्थ लिखने का लोभ संवरण नहीं कर सका हूँ। हम लोगों की वार्ता प्रश्नोत्तर रूप में निम्न प्रकार हुई - प्रश्न- क्या श्री जंबूस्वामी के सम्बन्ध में कोई उनका जीवनचरित्र उपलब्ध है ? मुझे उनके
सम्बन्ध में जानने की उत्कण्ठा जागृत हुई है । उत्तर- पण्डितजी बोले कि श्री पूज्य जंबूस्वामी के अनेकों जीवन-चरित्र लिखे गये हैं, विभिन्न
भाषामों में व विविध काल और विविध स्थानों में सौ से अधिक ग्रंथ उनके जीवन