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जनविद्या
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मिथुनों की उद्यान-क्रीड़ा में उत्प्रेक्षा अलंकार के अभिदर्शन होते हैं, यथा -
डोल्लहरि व लग्गी कंठह लग्गी वल्लहमुहचुबणु करइ । थणरमणविडंबिणि का वि नियंबिणि निहुअणकेलिहि अणुहरइ ॥
4.16.11-12
इसके अतिरिक्त निदर्शना, दृष्टान्त, वक्रोक्ति, विभावना, विरोधाभास, व्यतिरेक, संदेह, भ्रांतिमान, सहोक्ति, अतिशयोक्ति, रूपकमाला अलंकारों का प्रयोग भावाभिव्यक्ति में सहायक बना है। बिम्बयोजना
"जंबूसामिचरिउ" में ऐसे अनेक वर्णन उपलब्ध हैं जिन्हें बिम्बयोजना के अन्तर्गत रखा जा सकता है । ग्रंथारम्भ में कवि ने राजा श्रेणिक का नखशिख वर्णन न करके उसकी शूरवीरता एवं प्रचंड प्रताप आदि के वर्णन द्वारा उसका एक भावात्मक बिम्ब खींचा है । बारह वर्षों की दीर्घ-अवधि में मेरे वियोग में नागवसु की अवस्था कैसी हो गई होगी, भवदेव की इस · चिन्तना का बिम्बात्मक वर्णन प्रभावक बन पड़ा है ।14
जंबूस्वामी के युवावस्था में प्राप्त होने के साथ-साथ उनके रूप और गुणों का यशोगान हर गली-कूचे, घर और बाहर एवं चौक-चौरस्ते पर सर्वत्र गाया जाने लगा। उनके धवल-यश से सारा भुवन ऐसा धवलित हो उठा मानो पूर्ण चन्द्रमा के ज्योत्स्ना रस से लीप दिया गया हो । सारे हाथी ऐरावत के समान, सब नदियां गंगा के समान, सभी पर्वत हिमालय के समान सबके सब पक्षी हंसों के समान और सारी मणियां (श्वेत) मणियों के समान दिखलाई पड़ने लगी, बालक की यशोवृद्धि का यह मनोहारी बिम्बात्मक वर्णन दर्शनीय है ।15
- इस प्रकार वीर कवि ने बिम्बयोजना में भी अद्भुत सफलता प्राप्त की है । छंद-योजना
___"जंबूसामिचरिउ" की रचना प्रमुख रूप से 16 मात्रिक अलिल्लह एवं पज्झटिका छंदों में हुई है । इसके उपरान्त 15 मात्रिक पारणक अथवा बिसिलोथ छंद का स्थान है । इसके साथ बीच-बीच में घत्ता, दुवई, दोहा, गाथा, वस्तु, खंडयं, रत्नमालिका, मणिशेखर आदि छंदों का, स्रग्विणी, शिखरिणी, भुजंगप्रयात प्रादि वर्ण-वृत्तों का प्रयोग परिलक्षित है । इस प्रकार ग्रंथ में कृतिकार ने मात्रिक और वणिक दोनों प्रकार के छंदों का प्रयोग किया है किन्तु अधिकता मात्रिक छंदों की है ।
मूल्यांकन
उपर्यकित विवेचनोपरान्त यह सिद्ध होता है कि "जंबूसामिचरिउ" सही अर्थों में रीतिबद्ध रचना है । रीति अर्थात् साहित्यशास्त्र के सिद्धान्त विषयक सभी आदर्शों का इसमें परिपालन हुआ है । महाकाव्य के सम्पूर्ण तत्त्वों का यथोचित समावेश कर "जंबूसामिचरिउ" को महाकाव्योचित गरिमा प्रदान करते हुए अपनी मौलिक सूझ-बूझ का परिचय देने में कविश्री