Book Title: Jain Vidya 05 06
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 49
________________ जैन विद्या 43 उत्तर- आप ठीक कहते हैं कि कवि के पिता देवदत्त ने अपने पुत्र का मार्ग-दर्शन कर उन्हें साहित्य में अपना उत्तराधिकारी बनाया। फिर वीर कवि धीरे-धीरे उत्साह व लगन के साथ साहित्यरत्नाकर में गहरे उतरते गये और बहुमूल्य काव्यरत्न ले ही पाये । प्रश्न- क्या कवि देवदत्त के कोई ग्रंथ देखने को मिल सकते हैं ? उत्तर- नहीं भाई ? कवि वीर के जीवन-चरित्र में इन ग्रंथों का स्पष्ट वर्णन है, पर ताड़-पत्र पर लिखे ये ग्रंथ अब अनुपलब्ध हैं । शायद किसी शास्त्र-भण्डार में मिल जायं, नहीं तो समझना चाहिए कि वे ग्रंथ नष्ट हो गये हैं । हजारों अमूल्य ग्रंथ इसी तरह असुरक्षा, दीमक, सीलन आदि से नष्ट हो चुके हैं । शायद उन ग्रंथों की भी वही गति हुई हो। प्रश्न- इस महाकाव्य को लिखाने के लिए कोई प्रेरक भी थे क्या ? उत्तर- वीर कवि की गहन साहित्य-रुचि और काव्य-प्रतिभा को देख मालव देश के सिन्धु वर्णी नगरी में बसनेवाले सेठ तक्खड़ की भावना हुई कि कवि से 'जंबूसामिचरिउ' लिखवाया जाय । सेठ तवखड़ कवि के पिता देवदत्त के मित्र भी थे। सेठ तक्खड़ की प्रेरणा थी कि प्राचीन ग्रंथों को खोजकर अपभ्रंश भाषा में वह ग्रंथ लिखा जाए क्योंकि उस समय अपभ्रंश जनभाषा थी और उसमें ऐसा कोई ग्रंथ नहीं था। कवि ने संकोच किया तब सेठ तक्खड़ के अनुज भरत ने बहुत जोर लगाकर कवि को राजी कर लिया और इस ग्रंथ का तक्खड़ की हवेली में लिखा जाना प्रारम्भ हो गया और वहीं समाप्त भी किया गया । प्रश्न- साथ में यह भी बताइए कि यह ग्रंथ कब प्रारम्भ हुआ और कब समाप्त हुआ ? उत्तर- यह ग्रंथ माघ मास सं 1075 में प्रारम्भ हुआ और माघ शुक्ला दशमी वि.सं. 1076 यानी पूरे एक वर्ष में पूर्ण हुआ । यह स्पष्ट उल्लेख 'जंबूसामिचरिउ' की प्रशस्ति में है। प्रश्न - वीर कवि ने अपने पूर्ववर्ती किन कवियों का साभार स्मरण किया है ? उत्तर- वीर कवि ने कवि स्वयंभू, कवि पुष्पदंत और अपने पिता देवदत्त का ही स्मरण किया है (5.1)-"स्वयंभूदेव के होने पर एक ही कवि था, पुष्पदंत के होने पर दो हो गये और देवदत्त के होने पर तीन । यहां बहुत दिनों से काव्य घर-घर से दूर चला गया था, अब कविवल्लभ वीर के होने पर पुनः लोट पाया।" कवि ने (संधि 1.2.12 में) लिखा “ऐसा कोई जो श्रुति-सुखकर (कर्णमधुर) स्वर से काव्य पड़े और उससे उत्पन्न मनोगत भावों को अभिव्यक्त करे तो वह (महाकवि) स्वयंभू को छोड़कर अन्य कौन हो सकता है ।" इन तीन कवियों के सिवाय उसने किसी अन्य का आभार नहीं माना है ?" प्रश्न-- जंबूसामिचरिउ कथा पर किन ग्रंथों व कवियों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है ? उत्तर- 'जंबूसामिचरिउ' कथा की पूर्व परम्परा की दृष्टि से प्रथमतः वसुदेव हिण्डो, द्वितीय गुणभद्र कृत उत्तरपुराण, तृतीय समराइच्चकहा, एवं चतुर्थ जयसिंह सूरि कृत धर्मोपदेश-माला विवरण पर विचार करने के उपरान्त जिस ग्रंथ पर हमारी दृष्टि

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