________________
भेंट कवि धनपाल से
-श्री नेमीचन्द पटोरिया
मैं कवि धनपाल की 'भविसयत्तकहा' का मनोयोग से अध्ययन कर रहा था, शायद चार-पांच दिन बीते होंगे। नित्य की नाई उषःकाल में मैं घूमने गया। ऊपर गगन में बादल छा रहे थे और भू पर प्रगाढ़ कुहरा । इतने में देखा कि एक लताकुंज से एक धुंधली मनुष्याकृति प्रकट हुई और बोली-"मैं धनपाल, 'भविसयत्तकहा' का लेखक हूँ। मुझे क्यों स्मरण किया गया ?"
मैंने सविनय अभिवादन किया और निडर होकर कुछ प्रश्न किये । उन्होंने उनके जो उत्तर दिये उन्हें मैं यहां लिख रहा हूँ
प्रश्नश्रीमन् ! आपका नाम आजकल के लेखक 'धनपाल' लिखते हैं लेकिन आपके ग्रंथ में आपका नाम 'धणवाल' या 'धणपाल' आता है। बतायंगे कि आपका वास्तव में नाम क्या है ?
उत्तर-मेरा नाम संस्कृत में 'धनपाल' है लेकिन अपभ्रंश में 'धणपाल' या 'घणवाल' भी है। मैंने स्वयं अपने ग्रंथ में (संधि 5, 10, 11, 15, 20 और 22) 'घरमपाल' या 'धरणवाल' नाम ही स्पष्ट रूप से लिखे हैं।
प्रश्न-हे कविराज ! आपके रचित ग्रंथ के भी विविध नाम हैं। मूलरूप से वास्तविक नाम क्या है बतायंगे ?