Book Title: Jain Vidya 04 Author(s): Pravinchandra Jain & Others Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 1
________________ mmanfate 4 CHE PARTNE D भुवति णाणुज्जीवी जीवो जैन विद्या संस्थान श्री महावीर जी महावीर जयन्ती 2584 जैनविद्या महाकवि धनपाल विशेषांक 4 8734 यरणुचरेपिणु। चउविदुदेवागमणुक थि। विविदमसुदाईचकिलागय सिविला एमरी स मुषधि निविमय पुष्ण मुरुमंग। सिरिद्ध होपविभिहिटिंग उगमानविसाणरुवत णुमेलि विवियालु सुरले उसमे लिखा राजोदि धरधारा सास सिद्ध डा बाव सिवि घरास मिळुनालिविब जेनिथणपार्लेविर्टिबर हिंदावीसहिसंधिदि।परिवितिय लियदे अ लिव धिहिंघितः॥ कडवे सि । माएसरहासमुझवेणाधासि बिदेवि सुषविर इउसरसइसेलवे साथ अदोलय हो सुयपंचभिविदा । इज्जत वितिय सुदरिहा । इयपणा सिखपावरेषु इलजामा कुचर का मधेषु । फलु देइजाई हिउमा लापाचिंतामणिच्च श्ते लोप | इहजामा उध इनुवणसंति। अमारक दो मुहमोवा गर्पति। पर खारिकुंडकर वाद दबे । जो जमग्न इंत जिटेइलिवाह5जोलिय सिरिसरेण सोपुष्पदंडकिंविळणा ववास' करड्डोमनस हि।उ कुमर्णित हा सुकु हिपुहि।जइलजऽतरिविग्घु होत दामहदांणिफलुते जिहा॥६॥ ग्रडु किंवकुवाया विचरेण । 5क्वविचितमहंत रिला अणुमाता हितिपापांत बिल||१० अइउबि असवदीशियलयलगउगियतापविर मंजुषणानावियमिनि मुरणातदाकया अणुमायायरिमुयाशनदाफ, लेखनाईतिलिविजलाई शिवलीयगियाडीपहिलयदि नियर विणिविध मित्र विनिवि इस विषेकय सिरिगुरुदासुनमियमाणस्वतियनिगुणविदिभिर्विमुनेयाप लुग्याला देवाननविमविकारणयतेजा कुउददमई नमिनिदिमा लिदेउ । वाचडलविं यपन मिफल गणिह हम्मुआबाणलिपटत/परिचिंतन दव्य हिय। छलका जितपंच पतयानकियाaananइतिधनपाल कृतपंचमीस विष्णदत्तम्पसमा संवत४०वर्षे ग्रामोज मुदि१२ सनिवासरेधनिशन क्षेत्रे लिखिते देगा। असनब॥ म ब्रेडलवालशाधीनसंघ सरस्वतागळे वला कारगणश्री ॐदऊँ दाया यांन्वये सहारकी सकल कार्ति नहारक नुवत कत्यनहारक श्रीज्ञानन्त्रण गुरूपदेशानां निधारनकीर्त्तियनाथ। खंडेलवालज्ञानीय साह लाला सार्याललतादेमुन साण्वीरमलार्यादलुणदेवापरवतामार्या तदेतत्रा:बलराजनेतू एतैः ज्ञानावर एक र्मज्ञयार्थी लेख विवाद से जैनविद्या संस्थान INSTITUTE OF JAINOLOGY) दि० जैन अतिशय क्षेत्र, श्रीमहावीरजी जि० - सवाई माधोपुर, राजस्थानPage Navigation
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