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जैन विद्या
में होने का उल्लेख किया है । प्रकृत कृति में भविष्यदत्त की कथा 5 सर्गों या परिच्छेदों में विभक्त
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भविष्यदत्त चरित्र
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वि. सं. की 17- 18वीं शताब्दी में ही उपाध्याय मेघविजय ने उक्त कृति का निर्माण किया । मेघविजय व्याकरण, ज्योतिष और तर्कशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे । वे तपागच्छीय कृपाविजय के शिष्य थे । उनकी ग्रंथ प्रशस्तियों के अनुसार ही उनका समय सन् 1652-1703 के बीच है । मेघविजय की अन्य रचनानों में 'सप्तसन्धान', 'देवानन्द महाकाव्य' और 'युक्तिप्रबोध' नाटक प्रमुख हैं । 26ब
भविष्यदत्तचरित्र 22 ग्रधिकारों में विभक्त है। बीच-बीच में हितोपदेश, पंचतन्त्र आदि के सुभाषित दिये गये हैं । कुछ विद्वानों ने इसे धनपाल कृत 2000 गाथा-प्रमाण अपभ्रंश भविसयत्तकहा का संस्कृत रूपान्तर माना है 127
भविष्यदत्तबन्धु कथा
शक सं 1700 के आसपास दयासागर ने मराठी भाषा में 'भविष्यदत्तबन्धुकथा ' एतद्विषयक ग्रंथ लिखा । दयासागर की अन्य रचनाओं में जम्बूस्वामीचरित श्रौरसम्यक्त्वकौमुदी उल्लेखनीय है 128
भविष्यदत्तरास
राजस्थानी की रास परम्परा में ब्रह्म जिनदास ने 'भविष्यदत्तरास' रचा। ब्रह्मजिनदास संस्कृत के भी अच्छे विद्वान् थे । उनकी संस्कृत की 12 और राजस्थानी की 53 रचनाओं का उल्लेख डॉ. शास्त्री ने किया है 128 ब्रह्म जिनदास सरस्वती गच्छ के भट्टारक सकलकीर्ति के कनिष्ठ भ्राता और शिष्य थे। इनकी माता का नाम शोभा तथा पिता का नाम कर्णसिंह था । ये धनी और समृद्ध थे । इनका निवासस्थान पाटन था । इनका समय विक्रम की 15 - 16वीं शती स्वीकार किया गया है ।
भविष्यदत्त चौपाई
हिन्दी पद्यों में उक्त ग्रन्थ की रचना ब्रह्म रायमल्ल ने की। इसका रचनाकाल कार्तिक शुक्ल 14 वि. सं. 1633 है । इसकी प्रति भट्टारक ग्रन्थ भण्डार नागौर में है 130
भविष्यदत्त तिलकासुन्दरी नाटक
उक्त नाम से हिन्दी में नाटक की रचना प्रसिद्ध नाटककार श्री न्यामतसिंह जैन, " हिसार ने की। यह 1927 में प्रकाशित हुआ । श्री जैन ने हिन्दी की नोटंकी शैली में अन्य भी अनेक नाटक रचे जो आज भी मंचों पर बड़े चाव से खेले जाते हैं ।