Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 113
________________ भविसयत्तकहा (सुप्र पंचमि फल) की संस्थान में प्राप्त पाण्डुलिपियों को प्रशस्तियाँ -पं० भंवरलाल पोल्याका 1. वेष्टन सं० 748/पत्र संख्या 107/साइज 103"x4"/घणवाल । अथ संवत्सरेऽस्मिन्नूप श्री विक्रमादित्य राज्ये संवत् 1564 वर्षे फाल्गुन सुदि तिथि पंचमि वार प्रादित्य अश्विनि नक्ष".....। 2. वेष्टन सं० 749/पत्र-94/साइज-10"x5"/अपूर्ण । 3. वेष्टन सं. 751/पत्र-97/साइज-111x51"/प्रति प्राचीन एवं जीर्ण है। . पत्र तडकने लगे हैं। 4. वेष्टन सं० 752/पत्र सं०-108/साइज-11"x51"/पूर्ण । संवत् 1588 वर्षे मार्गसिर सुदि 5 गुरवासरे लिखितं ठाकुरउ श्री ब्रह्मदासु कायस्थु माथुर ॥ सुभ भवत् ।। ___ संवत् 1589 वर्षे श्रावण शुदि पौर्णमास्यां बुधवासरे श्रवण नक्षेत्रे श्री पार्श्वनाथ चैत्यालये श्री मूलसंघ नंद्याम्नाये सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्यनंदिदेवास्तत्प? भ० श्री शुभचन्द्रदेवास्तत्प? भ० श्री जिनचन्द्रदेवास्तत्प? भ० श्री प्रभाचन्द्रदेवास्तच्छिष्य मंडलाचार्य श्री धर्मचन्द्रदेवाः तस्याम्नाये श्री खंडेरवालान्वये । वैद्य गोत्रे पंडित-शिरोमणि पंडित पमा तस्य भार्या पद्मश्रीः। द्वितीय भार्या सूहो। तत्पुत्र पंडित विझा। पं० सुरजन । तयोर्मध्ये पं० विझा। भार्या विजणि तस्य त्रयः पुत्राः । प्रथम पंडित श्री धर्मदास भार्या धर्मश्री। द्वितीय भार्या कोडमदे। तत्पुत्र पं० रेखा भा०

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