Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 126
________________ 120 जनविद्या प. पु. 12.131 म. पु 46.316 म. पु. 75.365 68. उदारा भवन्ति हि वयापराः। 69. पापिनामुपकारोऽपि सुभुजंगपयायते । 70. अकारणोपकाराणामवश्यंभावि तत्फलम् । 71. कथं हन्या उपकारकरा नराः ? 72. समाषये हि सर्वोऽयं परिस्पन्दो हितार्थिनाम् । 73. भवेत्स्वार्था परार्थता। 74. परोपकारवृत्तीनां परतृप्तिः स्वतृप्तये । 75. मुख्यं फलं ननु फलेषु परोपकारः । पा. पु. 12.297 म. पु. 11.71 म. पु. 59.65 म..59.67 म. पु. 76.554

Loading...

Page Navigation
1 ... 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150