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जैन विद्या
डॉ. लालचन्द जैन, एम. ए., पीएच. डी., प्रवक्ता प्राकृत शोध संस्थान: वैशाली" इस प्रकार की शोध पत्रिका की जैन जगत् में बहुत श्रावश्यकता थी । इन विशेषांकों में प्रकाशित सामग्री अनुसंधानपूर्ण, सरल और रोचक शैली में निबद्ध है । "जैनविद्या" के द्वारा न केवल अपभ्रंश सम्बन्धी दुर्लभ साहित्य की सेवा हो सकेगी बल्कि समस्त अपभ्रंश वाङ् मय का प्रालोचनात्मक रूप विद्वानों तक सहज ही पहुँच जायगा । अपभ्रंश के क्षेत्र में शोधप्रज्ञों को शोध करने में "जैन विद्या " का एक महत्त्वपूर्ण अवदान होगा ।"
डॉ योगेन्द्रनाथ शर्मा 'अरुण', एम. ए., पीएच. डी., साहित्यरत्न, रीडर एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग, बी. एस. एम. स्नातकोत्तर कालेज, दडकी (उ. प्र. ) - "पुष्पदन्त विशेषांक बेजोड़ और महनीय है। जैनविद्या संस्थान का यह सारस्वतयज्ञ निःसन्देह सतुत्य एवं श्लाध्य है ।"
श्री यशपाल जैन, सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली - "जैनविद्या पत्रिका निस्सन्देह एक उपयोगी प्रकाशन है । उसके सारगर्भित लेख पाठकों को ज्ञानवर्द्धक सामग्री प्रदान करते हैं । इतना ही नहीं, वे पाठकों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाते हैं और गम्भीर साहित्य का गहराई से अध्ययन करने की प्रेरणा देते हैं ।
हिन्दी में अपने ढंग की यह पहली पत्रिका है। उसके पीछे प्रापका श्रम और प्रापकी सूझबूझ स्पष्ट दिखाई देती है ।"
पं. अमृतलाल जैन, जैनदर्शन-साहित्याचार्य, ब्राह्मी विद्यापीठ, लाडनू - "पत्रिका का स्तर बहुत ऊंचा है । ऐसे स्तर की पत्रिका के सम्पादन में प्रतिभा के साथ भूरि परिश्रम भी अपेक्षित होता है ।
यह शोध पत्रिका अपने ढंग की एक है । इसका स्तर सभी दृष्टियों से उन्नत है । जर्मन विद्वानों एवं महापण्डित राहुल सांकृत्यायन द्वारा ध्यान दिलाये जाने पर भी अपभ्रंश साहित्य अभी तक उपेक्षित सा ही बना रहा। जैन विद्या ने इस ओर विशेष ध्यान दिया जो स्तुत्य है ।
सम्पादन, कागज, छपाई, सफाई, गेट अप तथा प्रूफ संशोधन आदि सभी उत्तम हैं । "
डॉ. छोटेलाल शर्मा, बनस्थली विद्यापीठ - " पुष्पदन्त विशेषांक उच्चकोटि का प्रयत्न है। इससे पुष्पदन्त की विशिष्टता और गरिमा ही उद्घाटित नहीं हुई है, मानव मात्र की सम्भावना की ऊँचाई भी प्रकट हुई है । आज के इस विशृंखलितस्खलित समाज में पुष्पदन्त की रचनानों की विशेषताएं साधनात्मक मार्ग की निर्देशिका हैं। मैं इस और ऐसे प्रयत्न की हृदय से अनुशंसा करता हूं।"