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जैन विद्या
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डॉ. गोविन्दजी. डी. फिल, रीडर एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग, मेरठ विश्वविद्यालय मेरठ - " पुष्पदन्त कवि पर प्रामाणिक एवं पठनीय सामग्री देकर प्रापने श्लाघनीय कार्य किया है । कवि के अनेक प्रते सन्दर्भों को प्रकाश में ले प्राकर प्रापने उसके व्यक्तित्व को उजागर कर दिया । प्रत्येक पुस्तकालय के लिए अंक संग्रहणीय है ।"
पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री, कटनी - "संस्थान द्वारा यह अनुपम और प्रमूल्य सेवा है जो ऐतिहासिक पक्ष को प्रकाश में लाने के कारण बहुमूल्यवान् है । संस्थान की, संस्था संचालकों की तथा विद्वानों की सेवा के लिए समाज चिर ऋणी रहेगा ।"
डॉ. जयकिशन प्रसाद खण्डेलवाल, एम. ए. (पांच), एल.एल.बी., पी.एच.डी., साहित्यरत्न, साहित्यालंकार, अध्यक्ष-संस्कृत विभाग, राजा बलवन्तसिंह कॉलेज, प्रागरा - " जनविद्या' जैनशोध सम्बन्धी अग्रणी पत्रिका के रूप में उभर कर श्रा रही है। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि यह एक शोध प्रबन्ध है जिसमें पुष्पदन्त के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रामाणिक विद्वानों ने अपने शोधपरक निबन्धों द्वारा विभिन्न पहलुओं का उद्घाटन किया है। अपभ्रंश साहित्य के अध्ययनअनुसंधान में इस पत्रिका का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। यह पत्रिका शोध संस्थानों एवं महाविद्यालयों के पुस्तकालयों के लिए तो अनिवार्य है ही साथ ही अपभ्रंश के अन्धकारपूर्ण प्रकोष्ठ को सूर्य के प्रकाश से जगमगानेवाली है ।"
श्री प्रक्षयकुमार जैन, दिल्ली - "जैनविद्या" पत्रिका ने अपना उच्चस्तर स्थापित किया है। वह शोधार्थियों के लिए तो लाभप्रद होगा ही जैन वाङमय के सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में भी उपयोगी सिद्ध होगा ।"
पं. नाथूराम डोंगरीय, जैन साहित्य प्रकाशन, इन्दौर - "वास्तव में जैनविद्या सस्थान जो अपभ्रंश साहित्य में विद्यमान मानव समाज के हित में बहुमूल्य सामग्री का अन्वेषण, सम्पादन और प्रकाशन कर रही है वह सचमुच सराहनीय और अभिनन्दनीय है । भाषा भावों को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है चाहे वह अपभ्रंश ही क्यों न हो। इस दृष्टि से समाजहित में कवियों, विद्वानों व प्राचार्यो द्वारा अपभ्रश भाषा में रचित साहित्य का भी कम मूल्य नहीं है जैसा कि पुष्पदन्त विशेषांक के लेखों से प्रकट है ।"
डॉ. प्रेमचन्द विजयवर्गीय, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग, वनस्थली विद्यापीठ राज. – पुष्पदन्त पर दो खण्डों में निकाले गये ये विशेषांक उच्चस्तरीय सामग्री से युक्त हैं । ये पठनीय तो हैं ही, स्थायी महत्त्व के होने के कारण संग्रहणीय भी हैं । ये अंक उच्चकोटि की सम्पादनकला के परिचायक हैं। जिस पत्रिका का प्रारम्भ ही इतना उच्चस्तरीय और सुरुचिपूर्ण है उसके उत्तरोत्तर विकास की सहज ही प्राशा की जा सकती है ।"