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जैन विद्या
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11. पं. दयाचन्द्र साहित्याचार्य, प्राचार्य श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय,
सागरः- "भारतीय साहित्यमयसागर का एक महत्त्वपूर्ण अंग, राजस्थानीय साहित्य उपसागर का पुरुषार्थ से पालोडन कर जो जैनविद्यामृत को आपने उपलब्ध किया है और अन्य ज्ञानामृतपिपासाओं को उपलब्ध कराया है यथार्थ में स्वादिष्ट अनुपम प्रात्मानन्दप्रद और प्रबोधकारी अमृत है, उससे ज्ञान पिपासुमों की क्षुधा, तृषा शांत हो सकती है।"
12. पं. धर्मचन्द शास्त्री, व्यवस्थापक, श्री ऐलक पन्नालाल दि. जैन सरस्वती भवन,
उज्जैन-विशेषांकों में अपभ्रंश भाषा के विशेषज्ञ विद्वानों की पठनीय रचनाएं हैं । इनसे शोधकर्ता विद्वानों को सहज ही प्रभूत सामग्री हाथ लग जाती है । पत्रिका ने जनसाहित्य की शोध प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का जो महत्त्वपूर्ण कार्य हाथ में लिया है वह सर्वथा श्लाघ्य और अभिनन्दनीय है।" डॉ. रमेशचन्द्र जैन, बिजनौर-"सभी लेख अधिकारी विद्वानों द्वारा लिखित हैं । इनके माध्यम से कवि का साहित्यिक मूल्यांकन सुगठित और परिष्कृत शैली में हुआ है । कवि के वाग्वदग्ध्य, अर्थचातुर्य और प्रज्ञा को जानने में सहायक होकर
यह विशेषांक साहित्यरसिकों को निश्चित रूप से आकर्षित करेगा।" 14. पं. सत्यंधरकुमार सेठी, उज्जैन-"यह विशेषांक नहीं मैं तो यह मानता हूं कि महाकवि पुष्पदन्त के जीवन और व्यक्तित्व से सम्बन्धित एक महान शोधग्रंथ है।
प्रस्तुत अंक में कितने ही ऐसे लेख हैं जिनके पढ़ने से मानव को नया चिन्तन मिलता है।
___ क्षेत्र के प्रबन्धकों ने जनविद्या पत्रिका को जन्म देकर ऐसा कदम उठाया
है जो साहित्य -जगत् में चिरस्मरणीय रहेगा।" 15. डॉ. गंगाराम गर्ग, प्रवक्ता महारानी श्री जया कालेज, भरतपुर--"इस विशेषांक
का प्रकाशन भी प्रत्युत्तम है। इसमें कवि के व्यक्तित्व और काव्यकला संबंधी
वैविध्यपूर्ण जानकारी प्रचुर मात्रा में जुटाई गई है।" 16. डॉ प्रावित्य प्रचण्डिया 'दीति' एम.ए., पीएच.डी., अलीगढ़-"प्राद्यन्त प्राकर्षक
और महनीय है। एक ही कवि पर विविध विषयालेख दो खण्डों में प्रकाशित करने का श्रमसाध्य संकल्प एवं महाकवि पुष्पदन्त के सर्वांगीण स्वरूप को प्रस्तुत
करने का स्वयं में अभिनव संकेतक है।" 17. श्री बिरधीलाल सेठी, जयपुर-"विभिन्न पहलुओं पर गवेषणात्मक लेख हैं ।
मैं समझता हूं यह इस किस्म का प्रथम प्रयास है। विशेषांक विद्वानों द्वारा संग्रहणीय है।"