Book Title: Jain Vidya 04
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 139
________________ जैनविद्या के पुष्पदन्त विशेषांक विद्वानों की दृष्टि में 1. डॉ. हीरालाल माहेश्वरी एम. ए., एल. एल. बी., डी. फिल , डी. लिट., असो. प्रो. हिन्दी विभाग, राजस्थान वि. वि. जयपुर-"आपने ये अंक निकाल कर साहित्य जगत् का उपकार किया है। स्वयभू और पुष्पदन्त के बिना अपभ्रंश .. साहित्य तो अपूर्ण है ही, हिन्दी साहित्य का इतिहास लेखन भी बिना इनके अध्ययन के सम्यक्रूपेण लिखा जाना कठिन है।" डॉ. कैलाशचन्द्र भाटिया, प्रोफेसर हिन्दी तथा प्रादेशिक भाषायें, लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी-"बहुत ही शोधपूर्ण साथ ही उपयोगी सामग्री प्रस्तुत की गई है। पुष्पदन्त साहित्य का अध्ययन करनेवालों के लिए यह परम उपयोगी सिद्ध होगा । अब तो एम. ए. (अपभ्रंश) में पुष्पदन्त का साहित्य भी पढ़ाया जाता है। कृतियों का मूल्यांकन उच्चस्तरीय तथा मौलिकता युक्त है । "महानन्दि" कृत "पाणंदा" देकर आपने बहुत उपकार किया है।" 4. मुनिश्री नगराजजी, डी. लिट.- “साज-सज्जा व सामग्री के विहंगावलोकन से ही एक मानसिक तृप्ति का आभास हुआ । प्रस्तुत पत्रिका तो सचमुच ही जैन समाज की विरल पत्रिकाओं में एक लगी। यह कह पाना भी कठिन है कि कौनसा लेख प्रथम कोटि का है और कौनसा द्वितीय कोटि का है। प्रत्येक लेख में महाकवि पुष्पदन्त व अपभ्रंश के विषय में कुछ न कुछ नवीन जानने को मिला । जनविद्या के उत्तरोत्तर विकास की मगलकामना के साथ ।" ग. रामस्वरूप प्रार्य, एम. ए., पीएच. डी., रोडर एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग, वर्षमान कालेज, बिजनौर-"विशेषांक में महाकवि पुष्पदन्त तथा उसके कृतित्व के सम्बन्ध में दुर्लभ और खोजपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करने का प्रशंसनीय प्रयत्न किया है । शोधपूर्ण पत्रिकाएं अब विरल होती जा रही हैं। "जैनविद्या" के माध्यम से प्राप इस ज्योति को प्रज्वलित कर रहे है, यह प्रसन्नता की बात है ।" चारकोति भट्टारक स्वामीजी, श्री जैन मठ श्रवणबेलगोला-we have gone through the magazine. It has come out very well. Subjects discussed in the articles are research oriented. Your efforts are really appreciable. 5.

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