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नविन
18. डॉ. रामनारायण चतुर्वेदी, निदेशक संस्कृतशिक्षा, राजस्थान-जनविद्या संस्थान
श्रीमहावीरजी का यह अर्द्ध-वार्षिक प्रकाशन अपने शोधपूर्ण सामग्री के कारण भारत की शीर्षस्थ शोध-पत्रिकाओं में परिगणनीय है। पुष्पदन्त विशेषांक खण्ड-2 के सभी लेख स्तरीय हैं। महाकवि पुष्पदन्त अपभ्रंश भाषा के शीर्षस्थ कवि हैं। न केवल अपभ्रंश अपितु हिन्दी साहित्य एवं भाषा के इतिहास में पुष्पदन्त नींव के प्रमुख प्रस्तर हैं। जिनके विषय में पं. राहुल सांकृत्यायन ने अपनी हिन्दी काव्यधारा में उचित ही लिखा है।
पुष्पदन्त के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर इतनी प्रचुर, महत्त्व एवं वैविध्यपूर्ण सामग्री प्रकाशित कर प्रापने साहित्य जगत् का महान् उपकार किया है ।
आशा है साहित्य जगत में इस कृति का यथोचित आदर एवं मूल्यांकन होगा।" 19. श्री रामचन्द्र पुरोहित, पूर्व प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर__"जनविद्या पत्रिका के पुष्पदन्त विशेषांक के दोनों खण्ड देखकर प्रसन्नता हुई।
संस्थान इस प्रकार के कार्य कर न केवल जैन साहित्य को ही प्रकाशित कर रही है अपितु हिन्दी के आदि सृष्टाओं एवं उनके कर्तृत्व के विभिन्न पक्षों को भी उजागर कर रही है। इस प्रयत्न में जो विद्वान् सक्रिय योग दे रहे हैं वे सब धन्यवादाह हैं। इस प्रयत्न से हिन्दी के प्रादि साहित्य के जिज्ञासुओं की तृप्ति होगी। : अध्ययन-मनन की दृष्टि से सामग्री उपयोगी है। मुद्रण-प्रकाशन प्रादि सभी
दृष्टियों से पत्रिका के दोनों अंक आकर्षक अवलोकनीय हैं।" 20. श्री कलानाथ शास्त्री, साहित्याचार्य, निदेशक-भाषाविभाग, राजस्थान शासन, जयपुर
"जैन विद्या' के अंकों को प्रारंभ से ही देखता रहा हूं। पत्रिका की यह सराहनीय योजना है कि जैन साहित्य के उन कालजयी रचनाकारों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक अक में विशेष अध्ययन प्रस्तुत किया जाय जिन्होंने अपभ्रंश भाषा में वरेण्य
ग्रंथ लिखे हैं और जिनके लेखन के बारे में सारे देश को जिज्ञासा रहती है। - :... "जैन विद्या" का जनसाहित्य को अवदान चिरस्मरणीय ही नहीं, प्रजर और
अमर रहेगा इस पर इन तीन अंकों को देखकर ही आश्वस्त हुआ जा सकता है। मेरी बधाई स्वीकार करें।"
शं. दामोदर शास्त्री, व्याकरणाचार्य, सर्वदर्शनाचार्य, जैनदर्शनाचार्य, एम.ए. (त्रय), विद्यावारिधि, अध्यक्ष एवं रोगर जैनदर्शन विभाग, लालबहादुरशास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, दिल्ली-“योग्य सम्पादन व कुशल निर्देशन में प्रकाशित यह शोधपत्रिका वस्तुतः संग्रहणीय व ज्ञानवर्द्धक बन पड़ी है। इस पत्रिका ने थोड़े समय में ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है। पुष्पदंत कवि के काव्य को केन्द्रित कर शोध-विद्या के सभी पक्षों को दृष्टि में रखकर शोध सामग्री प्रस्तुत की गई है।"